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जहा
और ना मिलने पर दुःखी हो जाता है । फिर वो अच्छी स्मृति भी चुभती है, बारबार रुलाती है । उस स्मृति तनाव हो जाता है । कल का सोच-सोचकर हम आज में रोते हैं और आज में रोते-रोते आने वाले कल को भी रूलाते हैं । आचारांगसूत्र में अतीत के गहरे से बाहर निकालने के लिए कहा है –'अणभिक्कतं च वयं संपेहाए; खणं जाणाहि पंडिए ।' अर्थात् हे आत्मविद् साधक ! जो बीत गया सो बीत गया। शेष रहे जीवन को ही लक्ष्य में रखते हुए प्राप्त अवसर को परख । समय का मूल्य समझ । हमारा अतीत अच्छा हुआ तो आज भी उसे लेकर हम तनाव में बदल देते हैं और अगर बुरा हुआ या कोई दुःखदायी घटना घटी तो भी हम उसको सोच-सोचकर उस घटना को बार-बार याद करते हैं और तनाव के गहरे में उतर जाते हैं। कहा भी गया है कडं कम्म, तहासि भारे। 59 अर्थात् जैसा किया हुआ कर्म, वैसा ही उसका भोग । आज आर्त्तध्यान करेंगे तो कल भी तनावग्रस्त ही रहेंगे। हम ये विचार नहीं करते कि जो हो गया उसे भूल जाएं, बल्कि यही विचार करते रहते हैं, दूसरों को सुनाते रहते हैं कि देखों हमारे साथ कितनी दर्दनाक घटनाएँ घटी हैं। कभी-कभी तो हमें बहुत अच्छा लगता है कि हमारे जीवन में कुछ अलग हुआ है। हमें मजा आता है उस तकलीफ को बार-बार छेड़ने में। हमें लगता है कि हम ऐसे ही दुःखी रहेंगे तो लोगों की सहानुभूति मिलेगी। बड़ा आनन्द मिलता है उसी दुःखी घटना को याद करने में, पर तब हमें ये अनुभव नहीं होता कि हम क्या कर रहें हैं, उसी तनाव के गढ्ढे में पड़े-पड़े अपना अनमोल जीवन बर्बाद कर रहे हैं। आज जो कार्य करना है उसे छोड़कर पुराने दुखड़े रो रहे हैं। इसी मूर्च्छा में पड़े रहते हैं और जब होश आता है तब तक बहुत देर हो जाती है। जिस समय जो कार्य करना था, वह नहीं किया तो उसका भी भार एक साथ हम पर पड़ता है। हमारा अतीत इतना भयानक नहीं हुआ होगा जितना भयानक उसे सोच-सोचकर हम हमारा आज बना देते हैं और कहते हैं - वर्तमान सुधार
आचारांगसूत्र - 1/2/1
59 सूत्रकृतांग - 1/5/1/26
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