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होता है। स्मृति और कल्पना ये हमारे अन्तर्जगत की घटनाएँ हैं और परिस्थिति का सामना बाहरी जगत की घटनाएँ हैं। बाहरी जगत की घटनाएँ हमारे मानस पर उतना प्रभाव नहीं डालती, जिना प्रभाव हमारी कल्पना, हमारी स्मृति का हमारे मन पर और हमारी कार्य क्षमता पर पड़ता है। ना भूतकाल हमारा है ना भविष्यकाल। अगर कुछ है तो वह है वर्तमान। वर्तमान में जीने वाला व्यक्ति कभी भी तनाव का या भार का अनुभव नहीं करेगा। अगर हम अंतीत और भविष्य से कटकर, अलग होकर, उसके बारे में स्मृति या कल्पना से दूर रहकर वर्तमान में जीना सीख ले तो तनावमुक्त की स्थिति प्राप्त कर सकते हैं। आचार्य शंकर ने जीवन-मुक्त की परिभाषा लिखी है, उसमें यही बताया है -
अतीताननुसन्धानं भविष्यदविचारणम् । - औदासिन्यमपि प्राप्ते, जीवन मुक्तस्य लक्षणम् ।।
अर्थात् यह जीवन मुक्ति क्या है ? जहाँ अतीत का अनुसन्धान नहीं है और भविष्य की विचारणा नहीं है। भविष्य की कल्पनाएँ और योजनाएँ नहीं है, वह है जीवन–मुक्ति।
इसी प्रकार हम यह भी कह सकते हैं तनाव–मुक्ति ही जीवन मुक्ति है। अगर हम भविष्य की कल्पना नहीं करें, अतीत की स्मृति के अनुसन्धान को छोड़ दें, तो हमें मुक्ति का अनुभव होगा और यही तनाव-मुक्ति। हल्केपन का अनुभव होगा और हल्केपन का अनुभव मतलब शांति का, आनंद का, अनुभव, तनावमुक्ति का अनुभव।
व्यक्ति या तो अपने अतीत में जीता है या भविष्य में। अतीत हमारी स्मृति बन जाता है। अगर स्मृति अच्छी है, अतीत अच्छा है तो हम यही सोच-सोचकर परेशान होते हैं, कि काश वो पल वो समय फिर आ जाए, लेकिन गुजरा कल वापस नहीं आता, फिर चाहे वो अच्छा हो या बुरा। हम यही सोचते हैं कि वो वक्त फिर से आए जिसमें हमने सुख का अनुभव किया था और जब वो सुख नहीं मिलता तो व्यक्ति विचलित हो जाता है। उस सुख को पाने की आशा में
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