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________________ विज्ञान में मिलता है। उनके विचार थे कि आज विज्ञान के कारण हम लोगों के हाथों में अत्यधिक शक्ति आ गयी है, लेकिन उसका उपयोग कैसे किया जाये, यह तो आत्मज्ञान (अध्यात्म) ही बतलाएगा। घोड़े को काबू में रखें और उस पर लगाम चढ़ायें, तभी आप उस पर चढ़कर चाहे जहां पहुंच सकते है। विज्ञान घोड़ा है और आत्मज्ञान उसकी लगाम। 45 कहने का तात्पर्य यही है कि आध्यात्मिकता के भवन को यदि ऊँचां उठाना है, जीवन को सुख और शांति से जीना है तो अध्यात्म को ही आधार बनाना होगा। आध्यात्मिक दृष्टि से जीने वाले व्यक्ति का जीवन तनाव से मुक्त रहेगा। व्यक्ति में मैत्री, करूणा आदि की भावनाओं का विकास होगा। प्रिय–अप्रिय में उसका समभाव होगा। वह देह व आत्मा की भिन्नता को समझेगा। अगर देह में कोई पीड़ा उत्पन्न होगी, तो तनाव उत्पन्न होगा, किन्तु आध्यात्मिक व्यक्ति उस पीड़ा को नश्वर देह की विकृति समझ कर तनावमुक्त रहेगा। अपने समान ही दूसरे प्राणी को समझेगा। इस बात कि सिद्धी उपाध्याय यशोविजय जी के ज्ञानसार से होती है, वे अध्यात्म का अर्थ बताते हुए लिखते है कि सद्धर्म के आचरण से बलवान बना हुआ तथा मैत्री, करूणा, प्रमोद और माध्यस्थ भावना से मुक्त निर्मल चित्त ही अध्यात्म है। चित्त की निर्मलता तनाव को हटा देती है। तनाव भौतिक दुःख एवं तनावमुक्ति आध्यात्मिक सुख व्यक्ति अगर भौतिकसुख सुविधा के पीछे भागेगा, तनाव पूर्ण जीवन जीएगा, क्योंकि उन भौतिक सुखों की लालसा में तनाव ग्रस्त होगा, किन्तु देह व मन को आत्मा से भिन्न मान कर आध्यात्मिक सुख प्राप्त करने का प्रयत्न करेगा तो तनावमुक्ति का अनुभव करेगा। भौतिक सुख तृप्ति नहीं देते हैं, एक इच्छा पूरी होने पर कुछ क्षण के लिए तृप्ति मिलती है किन्तु फिर मन अतृप्त और अशान्त हो जाता है। अतृप्त मन दुःखी बनाता है, तनाव उत्पन्न करता है। " आत्मज्ञान और विज्ञान, विनोबा भावे, पृ. 95-96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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