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________________ 308 . आक्रोश, हीनत्वादि पर सम्यक् नियंत्रण कर एवं विवेक, साहस, करुणा, उच्चत्वादि के विकास का प्रयास करना होगा। जिस प्रकार व्यक्ति बहुआयामी होता है, उसी प्रकार उसका व्यक्तित्व भी बहुआयामी होता है और उसे सही प्रकार से समझने के लिए अनेकान्त की दृष्टि आवश्यक होती है। अनेकान्त की दृष्टि से ही व्यक्ति की तनावग्रस्त मानसिक स्थिति को तनावमुक्त व संतुलित बनाया जा सकेगा। 3. राजनैतिक क्षेत्र में अनेकांतवाद के सिद्धांत का उपयोग -. वर्तमान में विश्व में अशांति का एक मुख्य कारण राजनीति भी है। हरेक समूह अपनी सत्ता चाहता है। अपनी-अपनी राजनीतिक विचारधारा को उचित मानकर राजनीतिज्ञों में संघर्ष बढ़ रहा है। पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, फासीवाद आदि अनेक राजनैतिक विचारधाराएँ तथा राजतन्त्र, कुलतन्त्र आदि अनेकानेक शासन प्रणालियाँ वर्तमान में प्रचलित हैं और एक-दूसरे को समाप्त करने में प्रयत्नशील हैं। आवश्यकता है अनेकांत के सिद्धांत को प्रयोग में लाने की। यह सिद्धांत एक पक्ष को यह विचार देगा कि विरोधी पक्ष भी सही हो सकता है, इसलिए उसने जो दोष बताए हैं, उनका हमें निराकरण करना चाहिए। जब तक सबल विरोधी न हो हमें अपने दोषों का ज्ञान ही नहीं होता है। राजनैतिक क्षेत्र में अगर अनेकांत के सिद्धांत का प्रयोग किया जाए तो सरकार चाहे बहुमत दल की हो तो भी अल्पमत वालों की बातों को सुनकर दोनों में सामंजस्य बैठाया जा सकता है। 4. प्रबन्धशास्त्र और अनेकांतवाद - प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह किसी संस्था का हो या व्यवसाय का, समाज का हो या राज्य का हो, प्रबन्धशास्त्र का महत्त्व सबसे अधिक है। प्रबन्धन को कई रूपों में परिभाषित किया गया है। प्रबन्धन लोगों से कार्य करवाने की एक प्रक्रिया है तो दूसरी ओर प्रबन्धन को एक कला भी कहा गया है। किस व्यक्ति से किस प्रकार कार्य लिया जाए ताकि उसकी सम्पूर्ण योग्यता का लाभ उठाया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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