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________________ 2. मनोवैज्ञानिक क्षेत्र में अनेकांतवाद 63 "जिस प्रकार वस्तुतत्त्व विभिन्न गुणधर्मों से युक्त होता है, उसी प्रकार से मानव व्यक्तित्व भी विविध विशेषताओं और विलक्षणताओं का पुंज है ।" मनोवैज्ञानिकों का तो काम ही यही है कि व्यक्ति में निहित विविध विशेषताओं और विलक्षणताओं को देखना, समझना और समझकर व्यक्ति की मानसिक स्थिति में विकास करना । व्यक्ति की असंतुलित मानसिक स्थिति का संतुलित करने के लिए, उसमें विद्यमान दोनों गुणों को देखना होता है, अर्थात् तनाव के कारण को और तनावमुक्ति के लिए उनके सम्यक् मार्ग को । व्यक्ति को तनावमुक्त करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति सभी पक्षों, आयामों या स्थितियों को जान जाए और उनमें जो गुण उसे तनावमुक्त रखे, उसका विकास किया जा सके और जो उसे तनावग्रस्त बनाते हैं, उनका निराकरण किया जा सके। प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व में विविध पक्ष होते हैं और उसी में विरोधी व्यक्तित्व के लक्षण भी पाए जाते हैं । जैसे वासना और विवेक । व्यक्ति में एक ओर अनेक वासनाएँ, इच्छाएँ, आकांक्षाएँ भरी हुई हैं तो दूसरी ओर इन सभी पर नियंत्रण करने के लिए विवेक का गुणधर्म है। ये दोनों एक साथ ही उपस्थित रहते हैं, किन्तु इनमें एक दृष्टि तनाव उत्पन्न करने का मुख्य कारण है तो दूसरी तनाव को समाप्त करने में सहायक होती है । वासनाएँ व्यक्ति के अंदर क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेषादि भावनाओ को उत्पन्न करती हैं तो विवेक व्यक्ति में शांति, तृप्ति, वीतरागता, सहिष्णुता, नियंत्रणादि का विकास करता है । इस कड़ी में व्यक्ति में भय व साहस, अज्ञान व ज्ञान, आक्रोश व करुणा, हीनत्व और उच्चत्व, नफरत व प्रेम आदि की ग्रंथियाँ होती है, इनमें से क्रमशः प्रथम तनाव को उत्पन्न करती है व दूसरी तनावमुक्त करती हैं। व्यक्ति को अगर तनावमुक्ति को पाना है, तो उसे इन दोनों पक्षों को समझना होगा और वासना, भय, - 63 अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और सत्पभंगी (सिद्धांत और व्यवहार ) Jain Education International For Personal & Private Use Only 307 डॉ. सागरमल जैन, पृ.43 www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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