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________________ 309 जा सके, यह प्रबन्धन है। प्रबन्धक को प्रत्येक कर्मचारी के भिन्न-भिन्न गुणों की परख कर उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप कार्य सौंपना चाहिए। प्रबन्धक को अनेकान्तिक दृष्टि से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके प्रेरक तत्त्वों को समझना होगा। एक व्यक्ति के लिए मृदु आत्मीय व्यवहार एक अच्छा प्रेरक हो सकता है, तो दूसरे के लिए कठोर अनुशासन की आवश्यकता हो सकती है। एक व्यक्ति के लिए आर्थिक उपलब्धियाँ ही प्रेरक का कार्य करती है तो दूसरे के लिए पद और प्रतिष्ठा ही प्रेरक तत्त्व हो सकते हैं। प्रबन्धक व्यक्ति की इस बहुआयामिता को समझ ले तो कोई भी संगठन या संस्था अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। साथ ही संस्था में शांतिपूर्ण वातावरण बना रह सकेगा। किसी भी उद्योग में हड़ताल जैसी तनावपूर्ण स्थिति का अभाव होगा। 5. समाजशास्त्र और अनेकांतवाद - वर्तमान में प्राचीन समाज की कुछ रूढ़िवादिताएँ युवा व्यक्तियों में तनाव उत्पन्न करती हैं तो दूसरी ओर नए समाज की नई रीतियाँ वृद्धों में तनाव का कारण बनती हैं। . वस्तुतः समाज व्यक्तियों का समूह है। व्यक्तियों के इस समूह में प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता, अभिरूचि आदि भिन्न-भिन्न होती है, अतः सभी व्यक्तियों को समान तंत्र के द्वारा शासित करना सम्भव नहीं होता। सामाजिक दायित्वों के प्रदान करने और उनका निर्वाह करने में अनेकांत दृष्टि की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सभी व्यक्तियों को समान रूप से समान कार्यों में नियोजित नहीं किया जा सकता। अनेकांत वह विचारधारा है, जो व्यक्ति की योग्यता और क्षमता को समझकर उसके दायित्वों का निर्धारण करती है। जिस प्रकार इंजिन का एक भी कलपुर्जा अपने उचित स्थान से अलग जगह लगा दिया जाए, तो इंजिन की समग्र कार्यप्रणाली ध्वस्त हो जाती है। उसी तरह समाज में किसी भी व्यक्ति को उसकी योग्यता से भिन्न दायित्व प्रदान कर दिया जाए तो वह सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था को ध्वस्त कर देता है। इस प्रकार सामाजिक व्यवस्था के क्षेत्र में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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