SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमूढ़दृष्टि मूढ़ता या अज्ञान भी तनावों को जन्म देता है । मूढ़ता का अर्थ है, अज्ञानता । "हेय और उपादेय, योग्य और अयोग्य के मध्य निर्णायक क्षमता का अभाव ही मूढ़ता है।"17 जब व्यक्ति को यह ज्ञान नहीं होगा कि क्या त्यागने योग्य है और क्या ग्रहण करने योग्य है, क्या सही है और क्या गलत है, तो ऐसी मूढ़ता की स्थिति में व्यक्ति तनावयुक्त रहता है। अमूढ़ व्यक्ति ही तनावमुक्ति के सही मार्ग को समझ सकता है। साथ ही स्वयं को और दूसरों को भी तनावमुक्त जीवन का मार्ग दिखा सकता है । उपसंहार सम्यग्दर्शन जीवन जीने के प्रति एक दृष्टिकोण है। " हमारे जीवन की सार्थकता और जीवन के लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति भी इसी जीवन दृष्टिकोण के आधार पर ही होती है। मोक्ष ही तनावमुक्ति की अवस्था है। जैसी हमारी दृष्टि होगी, वैसा ही हमारा जीवन होगा। क्योंकि जैसी दृष्टि होती है, वैसी ही जीवन जीने की शैली होती है। हमारी जीवन जीने की शैली ही हमारे जीवन का निर्माण करती है । सम्यक् दृष्टिकोण तनावमुक्त करेगा और मिथ्या दृष्टिकोण तनावग्रस्त बनाएगा । मिथ्यादृष्टि का जीवन दुःख, पीड़ा और तनावों से युक्त होता है । यदि व्यक्ति का दृष्टिकोण सम्यक् नहीं होगा, तो वह कभी भी तनावमुक्त स्थिति को नहीं पा सकेगा । उसका जीवन सुख और शान्तिमय नहीं होगा । जिस प्रकार परिवार में बालक अपने योगक्षेम की सम्पूर्ण की जिम्मेदारी माता-पिता पर छोड़कर चिन्ताओं से मुक्त एवं तनावों से रहित सुख और शान्तिपूर्ण जीवन जीता है, उसी प्रकार साधक व्यक्ति भी अपने योगक्षेम की चिन्ता से मुक्त होकर निश्चिन्त, तनावरहित, शान्त और सुखद जीवन जी सकता है । इस प्रकार तनावरहित, शान्त और समत्वपूर्ण जीवन जीने के लिए सम्यग्दर्शन एवं आस्थावान होना आवश्यक है। इससे वह दृष्टि मिलती है, 17 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन 18 • जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन For Personal & Private Use Only Jain Education International 282 - पृ. 61 पृ. 61 www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy