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________________ 281 तनाव उत्पन्न करती हैं। अविश्वास भय को उत्पन्न करता है। तनावमुक्ति के लिए भय से मुक्त होना आवश्यक है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साध्य, साधन और साधना-पथ इन तीनों पर अविचल श्रद्धा होनी चाहिए। जिस साधक की मनःस्थिति संशयात्मक होगी वह संसार में परिभ्रमण करता रहेगा तथा अपने लक्ष्य को नहीं पा सकेगा। "जिस साधक की मनःस्थिति संशय के हिंडोले में झल रही हो, वह इस संसार में झूलता रहता है। 13 जो साधक थोड़ा सा भी संशय करेगा वह इस साधना मार्ग में अपने लक्ष्य से च्युत हो जाएगा। मूलाचार में निःशंकता को निर्भयता कहा गया है। तनावमुक्ति के लिए निर्भयता आवश्यक है। भयपूर्ण जीवन तनावपूर्ण जीवन है। अतः निःशंकता के गुण के द्वारा ही तनाव प्रबन्धन सम्भव है। निष्कांक्षता -. 'पर' की आकांक्षा नहीं करना निष्कांक्षता है। आकांक्षा का अर्थ है, इच्छा एवं निष्कांक्षा का अर्थ है इच्छा का अभाव। इच्छा तनाव उत्पन्न करती है। "स्वकीय आनन्दमय परमात्मस्वरूप में निष्ठावान रहना और किसी भी पर-वस्तु की आकांक्षा या इच्छा नहीं करना निष्कांक्षता है। 15 व्यक्ति की यह मानसिकता होती है, कि वह भौतिक वैभव की उपलब्धि में सुख खोजता रहता है, किन्तु भौतिक वैभव की यह इच्छा आकांक्षा को जन्म देती है। इच्छा या आकांक्षा तनाव पैदा करने का साधन है। साधनात्मक जीवन में भौतिक वैभव, ऐहिक तथा परलौकिक सुख को लक्ष्य बनाना ही जैनदर्शन के अनुसार 'कांक्षा' है।" भौतिक सुखों के पीछे भागने वाला साधक अपने लक्ष्य तनावमुक्ति को प्राप्त नही कर पाते हैं, साथ ही प्रलोभन और चमत्कार में स्वयं को उलझा लेता है। जब परिणाम नही मिलता तो तनाव की स्थिति में आ जाता है। जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन – पृ. 61 ।“ मूलाचार - 2/52-53 । जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन - पृ. 61 1" रत्नकरण्डकश्रावकाचार - 12 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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