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________________ 280 आत्मवत् समझकर अनुकम्पा का भाव तो रखता है, किन्तु ममता से मुक्त होने के कारण, दूसरे के दुःख से तनावग्रस्त नहीं होते हैं। समुचित मार्गदर्शन से उसके दुःख या तनाव के कारणों को समझाकर उनसे मुक्ति का मार्ग बता देता है। आस्तिक्य - आस्तिक्य या आस्तिकता का शाब्दिक अर्थ है -आस्था। जहाँ आस्था होती है, वहीं पारस्परिक विश्वास होता है और जहाँ विश्वास होता है, वहाँ निर्भयता होती है और जहाँ निर्भयता होती है, वहाँ तनाव नहीं होता, क्योंकि आज तनावग्रस्तता का मूल कारण एक-दूसरे के प्रति अनास्था या भय ही है। सम्यकदर्शन के आठ दर्शनचार और तनाव - उत्तराध्ययनसूत्र में सम्यग्दर्शन की साधना के आठ अंगों का वर्णन है। ये आठ अंग इस प्रकार है –निःशंकित, निःकांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढ़वृत्ति, उपबृंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना" इन आठ अंगों में कुछ अंग तनाव मुक्ति के साधन हैं। निःशंकता – संशयशीलता को अभाव ही निःशंकता है। जिन-प्रणीत तत्त्वदर्शन में शंका नहीं करना, उसे यथार्थ एवं सत्य मानना ही निःशंकता है।12 शंका दीमक की तरह होती है, जिसे साफ न किया जाए तो वह अंदर ही अंदर हमारी सोचने-समझने की क्षमता को खत्म कर देती है। मानसिक संतुलन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है। शंका व्यक्ति को किसी पर भी विश्वास नहीं करने देती और विश्वास कर भी ले तो वह भी संशयात्मक विश्वास होता है, जो व्यक्ति के हर रिश्ते को चाहे वह पारिवारिक हो, सामाजिक हो या धार्मिक हो,. उसे तोड़ देती है। साथ ही गलत धारणाएँ उत्पन्न करती है, ये गलत धारणाएँ " उत्तराध्ययनसूत्र - 28/31 12 आचारांगसूत्र – 1/5/5/163 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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