SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 263 ध्यान अशुभकर्म का बंध कराते हैं। अग्रिम दो अर्थात् धर्मध्यान और शुक्लध्यान तनावमुक्ति के उपाय हैं, इन्हें ही जैन धर्मदर्शन में मोक्ष प्राप्ति के उपाय भी बताया है और मोक्ष पूर्णतः तनावमुक्ति अवस्था ही है। धर्मध्यान - 'श्रुतधर्म और चारित्रधर्म के चिन्तन में चित्त की एकाग्रता का होना धर्मध्यान है। 156 श्रुतधर्म का अर्थ है, आगमों में वर्णित उपदेशों का या तीर्थकरों की आज्ञा का चिन्तन करना और चारित्र धर्म का अर्थ है, आगमों में दिए गए आचार का अर्थात् जिनाज्ञा का पालन करना। इसका तात्पर्य यही है कि साधक यह चिन्तन करे कि उसके लिए क्या करणीय या आचरणीय है और क्या अकरणीय या अनाचरणीय है। इस प्रकार धर्मध्यान का आलम्बन लेकर व्यक्ति तनावों से मुक्त हो सकता है, क्योंकि जिनाज्ञा इच्छाओं और आकांक्षाओं से ऊपर उठने में ही है। धर्मध्यान के भेद – धर्मध्यान के चार भेद बताए गए हैं17 - 1. आज्ञाविचय – जिनाज्ञा के चिन्तन में संलग्न रहना और उसके पालन में तत्पर रहना। 2. अपायविचय – संसार पतन के कारणों का विचार करते हुए उनसे बचने का उपाय करना। 3. विपाकविचय - अच्छे-बुरे कर्मों के फल का विचार करना। 4. संस्थानविचय - जन्म-मरण के आधारभूत पुरुषाकार इस लोक के स्वरूप का चिन्तन करना। 156 स्थानांगसूत्र - 4/1/65 157 स्थानांगसूत्र - 4/1/65 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy