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________________ 264 उपर्युक्त चारों प्रकारों का विवेचन इसी अध्याय में पूर्व में भी कर चुके हैं, यहाँ मात्र इतना कहना ही काफी होगा कि ये चारों प्रकार व्यक्ति को तनावमुक्त करने में सहायक बनते हैं, किन्तु ये सहायक तभी बन सकते हैं, जब व्यक्ति धर्मध्यान की साधना में प्रवृत्त हों, अर्थात् तनाव प्रबन्धन करें। स्थानांगसूत्र में धर्मध्यान के चार लक्षण कहे गए हैं। जैसे - 1. आज्ञारूचि - जिनाज्ञा के मनन-चिन्तन में रूचि, श्रद्धा एवं भक्ति होना। 2. निसर्गरूचि – धर्म कार्यों के करने में स्वाभाविक रूचि होना। 3. सूत्ररूचि – आगम शास्त्रों के पठन-पाठन में रूचि होना। . 4. अवगाढ़ रूचि - द्वादशांगी के अवगाहन में प्रगाढ़ रूचि होना।158 तनावमुक्ति के लिए धर्मध्यान का आलम्बन ले सकते हैं, किन्तु धर्मध्यान के लिए भी कुछ आलम्बन आवश्यक माने गए हैं। बिना आलम्बन के धर्मध्यान का होना भी सम्भव नहीं है। स्थानांगसूत्र में धर्मध्यान के चार आलम्बन बताए गए हैं159__ 1. वाचना – आगमसूत्र आदि का पठन करना। 2. प्रतिपृच्छना – शंका निवारणार्थ गुरूजनों से पूछना। 3. परावर्तन – पठित सूत्रों का पुनरावर्तन करना या उन्हें दोहराना। 4. अनुप्रेक्षा – आगमों के अर्थ का चिन्तन करना। उपर्युक्त वाचनादि आलम्बन से धर्मध्यान की सिद्धि होती है, किन्तु जब तक व्यक्ति के जीवन में तनाव का स्तर होता है, तब तक धर्मध्यान में स्थिरता 158 स्थानांगसूत्र - 4/1/66 15 स्थानांगसूत्र - 4/1/67 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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