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________________ 2. शोचनता दीनता प्रकट करते हुए शोक करना । 3. तेपनता - आँसू बहाना । 152 4. परिवेदनता – करूणाजनक विलाप करना । ' अनिष्ट वस्तु का संयोग या इष्ट का वियोग होने पर जो मनुष्य दुःख शोक, संताप, आक्रन्दन या विलाप करता है । वह सब उसकी तनावग्रस्तता को ही प्रकट करते हैं। रोग को दूर करने के लिए या प्रिय वस्तु नष्ट न हो जाए, इसके लिए चिन्तातुर रहना, वस्तुतः तनावग्रस्तता का ही लक्षण है । 1. जब दुःख आदि के चिन्तन में चित्त की एकाग्रता बनती है तो वह ध्यान की कोटि में आ जाती है। किन्तु ऐसा ध्यान आर्त्तध्यान कहलाता है और आर्त्तध्यान तनावग्रस्तता का ही सूचक है । 2. - रौद्रध्यान 153 'हिंसा या परपीड़न की क्रूर मानसिकता में चित्तवृत्ति की एकाग्रता रौद्रध्यान है ।" तनाव का सबसे पहला प्रभाव मानव के मानस पर पड़ता है । तनाव की जन्मस्थली मन है और मन की अशांति मस्तिष्क को भी अशांत बना देती है। जब मस्तिष्क अशांत होता है तो व्यक्ति रौद्रध्यान करने लगता है । रौद्रध्यान तनाव की स्थिति को और अधिक बढ़ा देता है। स्थानांगसूत्र में रौद्र ध्यान के चार प्रकार कहे गए हैं 154 Jain Education International ― हिंसानुबन्धी चित्त - वृत्ति की एकाग्रताः । मृषानुबन्धी — 261 निरन्तर हिंसक प्रवृत्ति में तन्मयता कराने वाली असत्य भाषण सम्बन्धी चित्त की एकाग्रता । 152 स्थानांगसूत्र - 4/1/62 153 स्थानांगसूत्र - 4/1/60, मधुकर मुनि 154 स्थानांगसूत्र - 4/1/63, मधुकर मुनि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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