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________________ 260 आर्तध्यान - किसी भी प्रकार के दुःख के आने पर शोक-मग्नता तथा चिन्तायुक्त मन की एकाग्रता आर्तध्यान है। 150 आर्तध्यान निराशा की स्थिति है। आर्तध्यान में व्यक्ति दुःख आने पर शोकाकुल और चिंतित हो जाता है। वह उसी दुःख का स्मरण करता रहता है। आर्तध्यान में व्यक्ति के चिन्तायुक्त मन की एकाग्रता उसे तनावग्रस्त ही करती है। स्थानांगसूत्र में इस ध्यान के चार उपप्रकार बताए गए हैं।151 1. अमनोज्ञ वस्तु का संयोग होने पर उसको दूर करने हेतु बार-बार चिन्तन करना। 2. मनोज्ञ वस्तु का संयोग होने पर उसका कभी वियोग न हो, ऐसा बार-बार चिन्तन करना। 3. आतंक या भय होने पर उसको दूर करने का बार-बार चिन्तन करना। प्रीतिकारक काम-भोग का संयोग होने पर उनका वियोग न हो, ऐसा बार-बार चिंतन करना। आर्तध्यान के इन चारों उपप्रकारों में 'चिंतन' शब्द का प्रयोग अवश्य है, किन्तु यहाँ चिन्तन का अर्थ चिंता से है और जहाँ चिंता होती है, वहाँ तनाव अवश्य होता है। चिंतायुक्त व्यक्ति तनावग्रस्त होता ही है। मनोविज्ञान में तनावग्रस्त व्यक्ति के जो लक्षण बताए जाते हैं, स्थानांगसूत्र में प्रायः वही लक्षण आर्तध्यान से युक्त व्यक्ति के कहे गए हैं। जैसे - 1. क्रन्दनता - उच्च स्वर से आक्रन्दन करना अर्थात् रोना। 150 स्थानांगसूत्र - ध्यानसूत्र 4/1/60 मधुकर 151 स्थानांगसूत्र – ध्यानसूत्र 4/1/61 मधुकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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