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________________ (ब) पृथक्करण :- इसके अंतर्गत व्यक्ति अपने आपको उस स्थिति से अलग कर लेता है जिसके कारण तनाव उत्पन्न होता है, जैसे - जब कोई किसी को अपमानित कर देता है, तो वह उन लोगों से मिलना जुलना छोड़ देता है । व्यक्ति उस स्थान पर या उन लोगों के समीप आना जाना छोड़ देता है, जो उसे तनावपूर्ण स्थिति में ले जाते है। ऐसा करने से उसे तनावमुक्ति का अनुभव तो नहीं होता है, वरन् पुनः तनाव उत्पन्न ही नहीं होता है । 228 (स) प्रत्यावर्तन :- इस विधि को व्यक्ति तब अपनाता है जब स्वयं को सुरक्षित नहीं पाता है या उसमें ईष्या की भावना के लिए उत्पन्न हो जाती है, जो उसे तनावग्रस्त बनाती है। ऐसे में व्यक्ति अपने तनाव को कम करने के लिए वैसा ही व्यवहार करने लगता है, जैसा वह पहले करता था, जैसे - जब घर में दो बालक हो जाते है। तब बड़ा बालक माता-पिता का उतना ही प्रेम पाने के लिए छोटे बच्चे की तरह घुटनों से चलना, हठ करना आदि क्रियाएँ करने लगता है I (द) दिवास्वप्न :- सपने, कल्पनाएँ व्यक्ति को तनावग्रस्त बनाती हैं, किन्तु जो इच्छाएँ पूरी नहीं होती व्यक्ति इन इच्छाओं की पूर्ति स्वप्नों या कल्पनाओं के माध्यम से करता है। ऐसा करने से कुछ समय के लिए उसकी पीड़ा कम हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति तनाव को कम करने के लिए कल्पना- जगत में विचरण करने लगता है, जैसे -छोटे बालक को हठ करने पर यह समझाया जाता है कि वह वस्तु उसे बड़े होने पर मिलेगी। इसी कल्पना में बालक फिर से हँसने लगता है । (ई) आत्मकरण कभी-कभी व्यक्ति हीनता की भावना से इतना तनावग्रस्त हो जाता है कि वह अपना आत्मविश्वास खो देता है और क्रमशः अधिकाअधिक तनावग्रस्त होता जाता है। ऐसे में व्यक्ति को आत्मीयकरण विधि को अपनाना चाहिए | इस विधि के अन्तर्गत किसी महान पुरूष, अभिनेता, राजनीतिज्ञ, आदि के साथ एकात्मता हो जाने का अनुभव करता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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