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से व्यवहार करने लगता है । अतः योजनाबद्ध चिन्तन का अर्थ है, चेतन मन को पूरी तरह सजग बनाकर यथार्थ की भूमिका पर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए व्यवस्थित चिंतन करना। जैनदर्शन में लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक तत्त्व को प्रमाद कहा गया है। प्रमाद की अवस्था में हमारा चेतन मन सुप्त हो जाता है और अचेतन भन सक्रिय हो जाता है। अचेतन मन यथार्थ को समझने के बजाए कपोल कल्पना के द्वारा लक्ष्य को पाने का असम्यक् प्रयत्न करता है। यदि तनावों से मुक्त होना है तो जैनदर्शन के अनुसार उसकी सबसे प्रमुख शर्त यह है कि अप्रमत्त और सजग होकर जिए। जैनदर्शन में प्रमाद को ही बंधन का और दुःख का हेतु बताया गया है। अतः जैनदर्शन के अनुसार तनावमुक्ति के लिए हमें चेतना के स्तर पर सजग होना होगा। जब चेतना सजग होती है तो वह यथार्थ और आदर्श के मध्य एक ऐसे सेतु का निर्माण करती है, जो लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक होता है । यथार्थ की भूमिका पर खड़े होकर आदर्श की प्राप्ति का लक्ष्य बनाना और उस ओर गति करना । यही जैनदर्शन के अनुसार योजनाबद्ध चिन्तन है । इसके माध्यम से व्यक्ति सफलता को प्राप्त कर असफलता जन्य कुंठा से उत्पन्न तनावों से मुक्त हो सकता है।
2. सकारात्मक सोचिए :- स्वस्थ, प्रसन्न और तनावमुक्त जीवन जीने की पहली शर्त है, सकारात्मक सोच । वस्तुतः व्यक्तिगत, परिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय तथा समस्त विश्व की समस्याओं का निराकरण सकारात्मक सोच से ही संभव है। मानसिक शांति और प्रगति के लिए अपनी विचारधारा को सकारात्मक बनाना होगा | जैन मुनि चन्द्रप्रभजी लिखते है कि - " सकारात्मक सोच का स्वामी सदा धार्मिक ही होता है। 81 सकारात्मक का अर्थ है सही ढ़ंग से विचार करना एवं सही समझ होना । जैनदर्शन के अनुसार सम्यग्दृष्टि होना ही सकारात्मक सोच है। जैनदर्शन के अनुसार सम्यग्दर्शन से ही सकारात्मक सोच का प्रारम्भ होता है। सम्यग्दर्शन का मूल अर्थ है यथार्थ दृष्टिकोण, सम्यग्दृष्टिकोण होना ।
8 सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइए
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श्री चन्द्रप्रभ सागर, पृ. 1
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