SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 220 एकाग्र होने की अलग से कोई विधि नहीं है। वस्तुतः ध्यान करने की जितनी भी विधियां है वे सभी मन के एकाग्र होने की विधियां है। मन की एकाग्रता का मात्र इतना लक्ष्य है कि हमारा पूरा चित्त उसी काम में होना चाहिए, जो काम हम वर्तमान क्षण में करते है। अगर हम हँसते है तो हमारा पूरा ध्यान हँसने में होना चाहिए। खुलकर हँसना चाहिए। हँसते रहो और मन को उसी हँसी का द्रष्टा बनाए रखो। उस वक्त सिर्फ हंसने से व्यक्ति तनाव से मुक्त हो जाता है, उस पल में सिवाय हँसने के कुछ याद नहीं रहता, किसी तनाव का एहसास नहीं होता। ऐसा करने से काम भी ठीक होगा, एकाग्रता भी बढेगी तथा तनाव घटते-घटते व्यक्ति एक दिन निर्विकल्प-दशा को प्राप्त कर तनावमुक्त हो जाएगा। 2. योजना बद्ध चिन्तन :- तनाव के जन्म का मुख्य कारण असफलता से पीड़ित कुठाए होती है। असफलता का मूल कारण किसी भी समस्या के संदर्भ में योजनाबद्ध तरीके से चिन्तन नहीं करना है। तनावों से मुक्त होने के लिए योजनाबद्ध चिन्तन आवश्यक है। योजनाबद्ध चिन्तन का अर्थ है कि जोकार्य हमने अपने हाथ में लिया था, उसमें असफलता के मुख्य कारण क्या रहे हैं ? असफलता के कारणों को सम्यक प्रकार से समझकर आगे के लिए सुव्यस्थित और सुनियोजित कार्य-विधि अपनाना योजनाबद्ध चिन्तन है। इसमें किसी भी कार्य में सफलता को प्राप्त करने के लिए उसमें बाधक साधक पक्षों का विचार करना होता है तथा यह समझना होता है कि बाधक पक्षों का निराकरण कैसे होगा और साधक पक्षों का उपयोग कैसे होगा ? इसे ही हम योजनाबद्ध चिन्तन कह सकते हैं। संक्षेप में यह असफलता के निराकरण के कारणों और सफलता के साधनों का सम्यक् उपयोग योजना को सफल बनाता है। अव्यस्थित चिन्तन में व्यक्ति वस्तुतः अपने अचेतन मन को नियंत्रित करने के बजाए उससे ही नियंत्रित होता है और सफलता के लिए यथार्थ को भूलकर काल्पनिक उड़ानें भरने लगता है। फलतः अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल हो जाता है। ये विफलताएं कुंठा को जन्म देती है और कुंठा की अवस्था मे वह अव्यवस्थित रूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy