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________________ इसका भावार्थ यही है कि सही समझ होना या सकारात्मक सोच होना। जहाँ सही समझ होती हैं वहाँ व्यक्ति के व्यवहार में विनम्रता, स्थिरता और सहनशीलता आती है। जो व्यक्ति अपने जीवन को सम्यक् रूप से जीता है, उसमें सकारात्मक सोच स्वतः ही उत्पन्न हो जाती है। अगर दृष्टिकोण सही नहीं है, तो व्यक्ति अपने व्यवहार और ज्ञान को सम्यक् नहीं बना सकता। जब व्यक्ति का ज्ञान सम्यक् नहीं होता है, तो व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है। सकारात्मक सोच के अभाव में व्यक्ति असफलता को पाता है। फलतः उदासी एवं अवसाद में चला जाता है। सकारात्मक सोच जीवन में सफलता का मूल मंत्र है। व्यक्ति की सोच उसके दैनिक-जीवन के क्रियाकलापों तथा आचार व्यवहार को सीधा प्रभावित करती है। मोक्षपाहुड मे लिखा है –“जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध है वही निर्वाण प्राप्त करता है। सम्यग्दर्शन-विहीन पुरुष इच्छित लाभ प्राप्त नहीं कर पाता। 82 दंसण पाहुड में भी यह अंकित किया गया है कि -"सर्म्यदर्शन से भ्रष्ट व्यक्ति को कभी भी निर्वाण की प्राप्ति नहीं होती है। कहने का तात्पर्य यही है कि जो सम्यग्दृष्टि जीव है, जो सकारात्मक विचार वाला व्यक्ति है वही मोक्ष प्राप्त करता है और तनावमुक्त अवस्था ही मोक्ष है। सम्यग्दृष्टिकोण के अभाव में व्यक्ति सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। वह अपनी सम्यक् इच्छाओं को भी पूर्ण करने में असफल हो जाता है। जसे भी कार्य किये जाते है, वे पहले सोच के रूप में मानसिक पटल पर उभरते हैं। जिसकी सोच सकारात्मक होगी, उसका मानसिक संतुलन बना रहेगा और अगर सोच नकारात्मक रही, तो व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाएगा। जैनदर्शन के अनुसार सम्यग्दृष्टिकोण को सकारात्मक सोच कहा है। व्यक्ति का मिथ्यादृष्टिकोण । उसकी नकारात्मक सोच का सूचक है। नकारात्मक सोच का परिणाम चिंता और तनाव है। मुनि चन्द्रप्रभजी लिखते है – “मस्तिष्क में जैसा डालोगे, वह वापस. 82 मोक्ष पाहुडी – 39, समणसुत्तं, 224 ७ दर्शन पाहुडी – 3, समणसुत्तं, 223 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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