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________________ 29 (अर्थात् (श्वास- प्रवास) है और जहाँ पवन है वहाँ मन है !..2 जब मन अशांत या तनावग्रस्त होता है तो सांस भी अनियमित झटकेदार आवाज करने वाली, उथली और वक्ष के ऊपरी भाग तक ही सीमित रह जाती है। जब मन शांत और तनावमुक्त होता है तो श्वास धीमी गहरी और लयबद्ध हो जाती है और शरीर के मध्यभाग तक प्रभाव डालती है । मन और श्वास में एक प्रकार का सहसंबंध है। श्वास-प्रश्वास को लयबद्ध और धीमा तथा गहरा करने पर लय तनाव शिथिल होते हैं और असंतुलित होने पर मन तनावग्रस्त हो जाता है। इसी प्रकार मन को शांत बनाकर श्वास-प्रश्वास को नियंत्रित किया जा सकता है, साथ ही श्वास-प्रश्वास को शिथिल करके अपने मन को शांत एवं तनावमुक्त कर सकते हैं। प्राणायाम से प्राण-शक्ति सक्रिय होकर शरीर के अंग प्रत्यंग में फैलती हे । और उसे स्वस्थ एवं बलवान बनाती है । भगवतीसूत्र में गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा- भंते ! जीव श्वासप्रश्वास लेते हैं ? यदि लेते है तो कैसे ? भगवान् ने इसका उत्तर चार दृष्टियों से दिया - 1. द्रव्य दृष्टि से, 2. क्षेत्र दृष्टि से, 3. काल दृष्टि से तथा - 4. भावदृष्टि से । 193 भगवान् ने भावदृष्टि से समाधान देते हुए कहा प्रत्येक जीव श्वासप्रश्वास लेता है। उसके श्वसन - पुदगल वर्ण, गंध रस और स्पर्शयुक्त होते हे । पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श श्वास में विद्यमान है। जब मनुष्य की भावधारा शुद्ध होती है तब इष्ट वर्ण, गंध रस और स्पर्श युक्त श्वास गृहीत होती है, तो शरीर स्वस्थ व मन तनावमुक्त होता है और जब भावधारा अशुद्ध होती है तब श्वास में अनिष्ट वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होते हैं, इससे स्वास्थ बिगड़ जाता है व मन तनावग्रस्त हो जाता हैं | 30 29. योगशास्त्र (हेमचन्दाचार्य), पंचम प्रकाश गाथा - 2 30. भगवई - 2, 3, 4.... Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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