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विकृति आ जाती है, वरन् उसके शरीर और मन दोनों की शक्तियों का अपव्यय भी होता है। प्राणायाम प्राण प्रवाह को क्रियाशील बनाने की प्रक्रिया है जो शरीर और मन की शक्तियों को प्रबल बनाती है। प्राणायाम मनोबल को बढ़ाकर मनोविकारों का निवारण करता है।
इन्द्रियों पर मन का नियंत्रण आवश्यक है। मन विकारग्रस्त होगा तो इन्द्रियों की चंचलता बढ़ेगी। इन्द्रियाँ विकारग्रस्त होकर अनियंत्रित हो जाएं, तो व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है। प्राणायाम से अगर मनोविकारों का ही निवारण कर लिया जाए तो व्यक्ति न तो मादक द्रव्यों के सेवन का शिकार होगा और न इन्द्रियाँ वासनाग्रस्त होंगी। इन्द्रियों में योगशक्ति का अभाव होने से व्यक्ति तनावग्रस्त होगा। कहा भी गया है:
__ " यथा स्वर्णधातुना दहन्ते धमनान्मलाः
तथेन्द्रियकृता दोषा दहन्ते प्राणधारणात।" "जिस प्रकार सोने को तपाने से उसके दोष निकल जाते हैं, उसी प्रकार प्राणायम से जलकर इन्द्रियों के दोष नष्ट हो जाते हैं।"
चिन्ता भय, इच्छा, असंतोष, ईर्ष्या, राग, द्वेष, अवसाद आदि की वृतियों से यदि व्यक्ति का मन ग्रसित हो जाएगा, तो मन का संतुलन तो बिगड़ेगा ही साथ ही व्यक्ति तनावग्रस्त भी होगा।
तनाव के निवारण के लिए मन के आवेगों का निवारण करना आवश्यक है जो कि प्राणायाम के द्वारा सम्भव है।
प्राणायाम में श्वास-प्रश्वास क्रिया को क्रमबद्ध, तालबद्ध, और लयबद्ध बनाया जाता है। मन और श्वासतंत्र का परस्पर आंतरिक रूप से संबंध है।"हेमचंद्राचार्य के योगशास्त्र में भी प्राणायाम का उल्लेख मिलता है। योगशास्त्र में मन और श्वास का संबंध बताते हुए कहा है कि – जहाँ मन है वहाँ पवन
28. अमृतनादोष- श्लोक -7
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