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" सूक्ष्मदृष्टि से प्राण का अर्थ ब्रह्माण्ड भर में संव्याप्त ऐसी ऊर्जा है, जो जड़ और चेतन दोनों का समन्वित रूप है। 31 प्राण-शक्ति से ही संकल्प - बल मिलता हैं यह संकल्प-बल ही जीवनीशक्ति है । संकल्प-बल के सहारे ही मनुष्य कुविचारों से जूझता है, कुसंस्कारों का निराकरण करता है। अगर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कहें, तो प्राणायाम वह शक्ति है, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ ही साथ चित्त की निर्मलता भी बढ़ती है। महर्षि पंतजलि ने प्राणायाम के परिणाम की चर्चा करते हुए लिखा है -
ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्”
प्राणायाम के द्वारा प्रकाश पर आया आवरण क्षीण हो जाता है । प्राणायाम केवल श्वास-प्रश्वास का व्यायाम नहीं है, अपितु कर्म निर्जरा की भी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है । जिससे चित्त की निर्मलता बढ़ती हैं, चित्त की निर्मलता ही चित्त की चंचलता को रोकती है और व्यक्ति को तनाव मुक्त करती है ।
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“प्राणायाम उपचार प्रक्रिया" :
सबसे पहले व्यक्ति को सांस लेने का सही तरीका सीखना चाहिए। जिस आसन में शरीर तनाव रहित हो, उस पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता हो, वही आसन प्राणायाम के लिए उपयुक्त है ।
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आवेश हेतु बांये से पूरक, दांये से रेचक, अवसाद हेतु दांये से पूरक, बांये से रेचक करना चाहिए । जब ध्यान श्वास-प्रश्वास पर होगा तो मन शांत होगा, तनावमुक्त होगा और निरन्तर इसके अभ्यास से पूर्णतः तनावमुक्त स्थिति प्राप्त
होगी।
31. आसन प्राणायाम के विधि-विधान - पृ 134
32. आसन प्राणायाम - पृ. 183
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