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मन के परिणाम ही हमें तनावयुक्त बनाते हैं। शुभ मनोभाव तनावमुक्त और अशुभ मनोभाव तनावयुक्त करते हैं। तनाव से मुक्त और तनाव से युक्त मनोभावों के निमित्त से लेश्या भी शुभ और अशुभ दोनों प्रकार की होती हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि शुभ लेश्या वाला व्यक्ति तनावमुक्ति की ओर अग्रसर है, और अशुभ लेश्या वाला तनावयुक्त व्यक्ति है।
लेश्याओं का नामकरण रंगों के आधार पर किया जाता है। वर्गों के माध्यम से मनुज-मन की शुभ या अशुभ स्थिति को जाना जा सकता है। इसलिए लेश्या के सिद्धांत को वर्गों पर आधारित किया गया है। लेश्या की परिभाषा - जैनदर्शन ने लेश्या का सम्बन्ध केवल मनुष्य से नहीं, अपितु सभी प्रकार के जीवों के साथ माना गया है। लेश्याओं के समानांतर कुछ मान्यताओं का वर्णन हमें प्राचीन श्रमण परम्पराओं में मिलता है, जिसकी चर्चा । पूर्व में कर चुके हैं, यहाँ लेश्या की परिभाषा पर विचार करेंगे।
षट्खण्डागम में लिखा है कि -जो आत्मा और कर्म का सम्बन्ध कराने वाली है, वही लेश्या है। 104 कर्मों का बंध तभी होता है, जब व्यक्ति रागद्वेष के कारण तनाव युक्त होता है। वस्तुतः तनावग्रस्तता के वशीभूत व्यक्ति ऐसे अनेक कार्य करता है जो उसके गाढ़ कर्मबंध का कारण होते हैं और जिनके परिणामस्वरूप व्यक्ति स्वयं के व्यक्तित्व का सम्यक विकास नहीं कर पाता है। - तनाव व्यक्ति की लेश्या को प्रभावित करते हैं और लेश्या व्यक्ति के व्यक्तिव को प्रभावित करती है। जिस तरह पूर्व में बंधे हुए कर्म उदय में आते हैं
और उनके विपाक की स्थिति में नये कर्मों का बंध भी होता रहता है, उसी प्रकार लेश्या का उदय होने पर तनाव उत्पन्न भी होता है और तनाव के कारण लेश्या की संरचना होती है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि किसी व्यक्ति में अशुभ लेश्या का उदय होगा तो वह किसी दूसरे को कष्ट देने का विचार करेगा और जब भी किसी के अहित की बात हमारी चेतना में आती है तो हम
104 अ) लेश्या और मनोविज्ञान -मु. शांता जैन, पृ. 7.
ब) अभिधानराजेन्द्र खण्ड-6, पृ.675
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