SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4. 5. 155 बिना किसी अपेक्षा के वह मात्र स्वकर्त्तव्य के परिपालन में सदैव जागरूक रहता है । सदैव स्वधर्म एवं स्वस्वरूप में निमग्न रहता है। लेश्या और तनाव उपर्युक्त वर्गीकरण के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि अशुभ मनोवृत्तियाँ तीव्र तनाव का हेतु हैं और शुभ मनोवृत्तियाँ अल्प तनाव की अवस्था है । वस्तुतः इन छह लेश्याओं में अंतिम तीन लेश्या ऐसी हैं, जिनमें तनाव अल्प मात्रा में ही उत्पन्न होते हैं। विशेष रूप से शुक्ल लेश्या में व्यक्ति केवल साक्षीभाव में स्थिर रहता है, वह ज्ञाता - द्रष्टाभाव में रहता है, उसके राग-द्वेष के भाव क्षीण हो जाते हैं । उसका 'पर' से सम्बन्ध नहीं रहता है, अतः उसकी वृत्ति केवल इतनी ही होती है कि मैं किसी का अहित न करूँ, अतः वह प्रायः तनावमुक्त रहता है। उत्तराध्ययनसूत्र में जो लेश्या की चर्चा है, उसके आधार पर हम इतना ही कह सकते हैं कि शुक्ल लेश्या वाला व्यक्ति तनावमुक्त रहता है, बाकी में तनाव की तरमता होती है। कृष्ण लेश्या वाला व्यक्ति सबसे अधिक तनावग्रस्त रहता है, उसकी ऊपर की लेश्याओं में क्रमशः तनावों में कमी होती जाती है और शुक्ल लेश्या तनावरहित अवस्था होती है। Jain Education International लेश्या मनुष्य की वैचारिक तथा मानसिक परिणामों की अभिव्यक्ति है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार - 'लेश्या हमारी चेतना की रश्मि हैं।' जिस प्रकार सूर्य की रश्मियाँ होती हैं, जो सूर्य की अभिव्यक्ति रूप होती हैं, उसी प्रकार लेश्या हमारी चेतना की रश्मि हैं, जो चेतना के आध्यात्मिक विकास के स्तर को अभिव्यक्त करती हैं। चेतना अदृश्य हैं, परन्तु उसकी अभिव्यक्ति शरीर के आभा मण्डल के माध्यम से बाहर भी होती है, ठीक उसी प्रकार जिस तरह स्विच ऑन करने पर अदृश्य करंट की अभिव्यक्ति ट्यूबलाईट के प्रकाश के द्वारा होती है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy