SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4. अपने हित के लिए दूसरे का अहित करने वाला होता है। 4. तेजोलेश्या यहाँ मनोदशा पवित्र होती है। उत्तराध्ययन में इस लेश्या के लक्षण बताते हुए लिखा है इस मनोभूमि में स्थित प्राणी पवित्र आचरणवाला, नम्र, धैर्यवान्, निष्कपट, आकांक्षारहित, विनीत, संयमी एवं योगी होता है। इस मनोभूमि में दूसरे का अहित तो सम्भव होता है, लेकिन केवल उसी स्थिति में जबकि दूसरा उसके हितों का हनन करने पर उतारू हो जाए । 102 5. पद्म - लेश्या . 1. 2. इस मनोभूमि में पवित्रता की मात्रा पिछली भूमिका की अपेक्षा अधिक होती है । इस शुभतर मनोवृत्ति से युक्त व्यक्ति में निम्न लक्षण पाए जाते हैं 103 3. 4. -- - 3. 6. शुभ - लेश्या यह शुभतम् मनोवृत्ति है। पिछली मनोवृत्ति के सभी शुभ गुण इस अवस्था में भी वर्तमान रहते हैं, लेकिन उनकी विशुद्धि की मात्रा अधिक होती है। इस लेश्या में निम्न लक्षण पाए जाते हैं। - 1. व्यक्ति जितेन्द्रिय एवं प्रसन्नचित्त होता है । क्रोध, मान, माया एवं लोभ रूप अशुभ मनोवृत्तियाँ अतीव अल्प हो जाती हैं 1 व्यक्ति संयमी तथा योगी होता है । वह अल्पभाषी, उपशांत एवं जितेन्द्रिय होता है । वह आत्मजयी एवं प्रफुल्लित चित्त होता है। Jain Education International 2. उसके जीवन का व्यवहार इतना मृदु होता है कि अपने हित के लिए दूसरों को तनिक भी कष्ट नहीं देना चाहता है । मन-वचन-कर्म से एकरूप होता है । 102 उत्तराध्ययनसूत्र 103 उत्तराध्ययनसूत्र 154 - 34/27-28 34/29-30 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy