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________________ तनावग्रस्त हो जाते हैं। अशुभ वृत्तियों में तनाव ग्रस्तता की मात्रा अधिक होती है। जबकि बिना राग- - द्वेष की भावना के हित की बात आती है तो वहां शुभ लेश्या होती है, तब इतना अधिक तनाव भी उत्पन्न नहीं होता है। अशुभ लेश्या अधिक तनावग्रस्त बनाती है और शुभ लेश्या तनावों को अल्प कर शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शान्ति प्रदान करती है। अशुभ लेश्या के कारण तनाव उत्पन्न होता है, क्योंकि इस लेश्या वाले व्यक्ति का व्यवहार, उसका स्वभाव, उसकी भावना आदि सम्यक् नहीं होती । उत्तराध्ययनसूत्र में लिखा है -कृष्ण, नील और कपोत ये तीनों अधर्म या अशुभ लेश्याएं हैं, इनके कारण जीव दुर्गतियों में उत्पन्न होता है । 105 इसके विपरीत तेजो, पद्म और शुक्ल ये तीन शुभ लेश्याएँ हैं, इनके कारण तनाव कम होते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में लिखा है कि – तेज, पद्म और शुक्ल ये तीन धर्म या शुभ लेश्याएं हैं। इनके कारण व्यक्ति तनावमुक्ति का प्रयास करता है । जब शुभ लेश्या का उदय होता है, तो तनावमुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और यह तनावमुक्ति की प्रक्रिया धीरे-धीरे तेजो लेश्या से शुक्ल लेश्या की ओर अग्रसर होती है। शुक्ल लेश्या में व्यक्ति पूर्णतः तनावमुक्त स्थिति का अनुभव करता है। इस स्थिति में देह का त्याग करने पर जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है। 100 105 उत्तराध्ययनसूत्र - 34 / 56 106 वही, 34/57 157 - सुगति में वही व्यक्ति जा सकता है, जिसका व्यवहार और स्वभाव निर्मल हो, जिसका मानसिक संतुलन स्थिर हो, विवेकशील और सभी से आत्मवत् वात्सल्यभाव रखता हो । यहाँ हमने अशुभ तथा शुभ लेश्याओं के स्वरूप को और उनका तनाव से सह- सम्बन्ध को बताया है। लेश्याओं के विभिन्न प्रकारों का वर्णन और उनका तनाव के साथ सह-सम्बन्ध आगे दिया जाएगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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