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________________ 127 कषाय के विभिन्न प्रकारों या स्तरों का तनाव से सह-सम्बन्ध - अनन्तानुबन्धी कषाय - - अनन्तानुबन्धी कषाय तनाव की वह प्रतिक्रिया युक्त तीव्रतम स्थिति है, जिसमें व्यक्ति तनावमुक्ति के बारे में सोच भी नहीं सकता है। वह मिथ्यादृष्टि से युक्त, घोर पापकर्म या दुष्ट प्रवृत्ति करने वाला अनन्तकाल तक संसार में भ्रमण करता है और सदैव तनावयुक्त बना रहता है। अनन्तानुबंधी कषाय का उदय होने पर व्यक्ति का तनाव स्तर अत्यधिक होता है। यह तनाव की वह स्थिति है, जिससे व्यक्ति आजीवन चिंतित एवं अशांत बना रहता है। निमित्त मिलने पर क्रोधादि की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है और जैसे-जैसे कषाय की वृद्धि होती है प्रतिक्रियाएँ भी बढ़ती जाती है, और तनाव का स्तर भी बढ़ जाता है। श्वेताम्बर ग्रन्थों में अनन्तानुबन्धी कषाय का काल जीवन-पर्यन्त बताया गया है अर्थात् व्यक्ति जीवन-पर्यन्त तनावग्रस्त रहता है। अनन्तानुबन्धी का अर्थ है, जो अनन्तकाल से अनुबन्धित है अर्थात् जो अनन्तकाल तक संसार में भ्रमण का कारण है, वह अनन्तानुबन्धी कषाय है। अनन्तानुबन्धी कषाय एक बार उत्पन्न होने पर इतनी प्रगाढ़ होती है कि व्यक्ति को तीव्रतम तनाव से ग्रस्त बना देती है जिससे उभर पाना बहुत मुश्किल होता है। तनाव की यह स्थिति व्यक्ति के पागल होने की स्थिति है। जिस प्रकार एक चुम्बक के दो टुकड़े होने पर वह अलग दिशार्थी बन जाते हैं, अर्थात् कभी जुड़ नहीं सकते उसी प्रकार अनन्तानुबंधी कषाय युक्त व्यक्ति भी मिथ्यात्व दशा में ही सुख की या तनावमुक्ति की खोज करता है। वह दिशा ही बदल देता है और उसी ओर अग्रसर होता है, जहां मानसिक संतुलन का अभाव होता है। वह निरन्तर प्रतिक्रिया करता रहता है। अनन्तानुबंधी कषाय वाला व्यक्ति अतृप्त कामना वाला होता है और जहाँ अतृप्त कामना होती है, वहां व्यक्ति में क्रोध, मान, माया और लोभ की प्रवृत्ति * जावज्जीवाणुगमिणो – विशेष. गाथा-2992 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003970
Book TitleJain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherTrupti Jain
Publication Year2012
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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