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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
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जीवन उस जीवन को जीवन कैसे कहा जाये, जहाँ ईंधन में आग नहीं, मात्र धुपा ही धुपा है ! जीवन तो दीप का जलना है, बाहर-भीतर एक रूप होते हुए ज्योतिर्मय होना है। ___ प्रभु तब तक जीवन दे, जब तक हाथ-पाँव चलते रहें।
जीवन अोस की बूंद है। पता नहीं कब गिर जाये। उसका बने रहना ही हमारा सबसे बड़ा सौभाग्य है।
वही जीवन जीवन है, जिसे कलाकार ने कला के लिए जीया है।
जीवन-दर्शन मनुष्य को जीवन-दर्शन के प्रति निष्ठावान् रहना चाहिये । प्रात्म-दृष्टि की निर्मलता के साथ अपने व्यवहारों का संवहनन करना जीवन-दर्शन की आधारशिला है।
जीवन-मूल्य जीवन-मूल्य ही व्यक्तित्व की सही गरिमा है । जीवनमूल्य की सीमाओं का उल्लंघन करना स्वयं जीवन से ही अतिक्रमण है।
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