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________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ जीवन-यात्रा बुढ़ापे के बाद जीवन परिवर्तित होता है तथा किसी दूसरे स्थान पर जाकर पुनः बालक के रूप में प्रगट हो जाता है । गर्भ से जन्म, जन्म से जवानी और बुढ़ापे की ओर चलने वाली यात्रा मृत्यु के द्वार से गर्भ की ओर वापसी है । २४ ] जीवन-सौरभ किसी फूल में दुर्गन्ध न होना सामान्य बात है । अभिनन्दन है उस फूल का, जिसने सुगन्ध पायी है । जीवन-स्मृति जीवन का प्रतीत उपन्यास के पढ़े हुए पन्नों की तरह है । मरते वक्त मनुष्य के पास जीवन के नाम पर सिर्फ स्मृतियों की पोटली ही शेष रह जाती है । जीवन्तता जीवन्तता शून्य जीवन किसी भी हालत में मौत से बेहतर नहीं है । जीवैषणा यह कैसा आश्चर्य है कि अंग गल गये, दांत गिर गये, बाल बदल गये फिर भी जीवैषरणा जिन्दी है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003969
Book TitleRom Rom Ras Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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