SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ ___ गंगा-स्नान गंगा-स्नान का अर्थ चित्त प्रक्षालन है। गंगा में डुबकी लगाने के बाद भी जैसे थे, वैसे ही रह गये, तो गंगा स्नान चित्त की बजाय मात्र देह का मैल धोना होगा। गति प्रगति वह गति निर्मूल्य है, जो प्रगति शून्य है। गर्दभ-बुद्धि हर गधे की बुद्धि एक-सी नहीं होती है। रूई के भार को पानी में डुबाकर दुगुना करने वाले गधे भी होते हैं तो डुबकी खाकर नमक के भार को हल्का करने वाले भी। गुरु-पहचान सद्गुरु की सही पहचान तो वे ही कर सकते हैं, जिन्हें हँस की छलनी लगी दृष्टि मिली है। गुरु-शक्ति वह गुरु क्या जो अमृत की अभिप्सा न जगा सके । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003969
Book TitleRom Rom Ras Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy