________________
रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
[ १६
क्रोध एक दिन के भोजन की पौष्टिकता एक बार किये जाने वाले क्रोध से राख हो जाती है ।
क्रोध-पछतावा क्रोध जहाँ चित्त को उत्तेजित और भारी भरकम करता है, वहीं पछतावा चित्त को हल्का करने का प्राधार है।
क्षण-भंगुरता जिन्दगी की पतंग उड़ाने का अपना आनन्द है, किन्तु इस बात से सदा जागरूक रहना चाहिये कि डोर हाथ से कभी भी फिसल सकती है।
क्षमा समर्थ होने पर भी, उपेक्षित होने के बावजूद, क्रोध न करना क्षमा है।
ख्वाब उन्हें असफलताएँ झेलनी पड़ती हैं, जो बिना श्रम के रातों-रात लखपति बनने का विचार करते हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org