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________________ २ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ अतिथि शुक्रिया है उसका, जो अपना अन्न खाने के लिए • तुम्हारे घर मेहमान बना। तुमने क्या खिलाया, उसने वही खाया जो उसके भाग्य का था। अतिथि-सत्कार जब अतिथि-सत्कार व्यावहारिकता का रूप ले लेता है, तब उसके प्राण उड़ जाते हैं । अतीत बीता हुआ समय और निकला हुया शब्द अतीत है, अतीत की पुनर्वापसी असम्भव है। __ अतीत-पुनरावर्तन याद को भुलाने का अर्थ है, अतीत की विस्मृति । अतीत विस्मरण के लिए नहीं, संस्मरणों से सीखने के लिए है ताकि कल की अच्छाइयों को आज और कल भी बार-बार दोहराया जाता रहे । अधिकार अगर किसी को जीवन देने का अधिकार तुम्हारे हाथ में नहीं है, तो मृत्यु का अधिकार किसने दिया। आधुनिक संसार की आधी दुनिया ऐसी है, जो रात को रो-रोकर सुबह करती है और दिन को ज्यू-त्यू शाम करती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003969
Book TitleRom Rom Ras Pije
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1993
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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