SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान : मार्ग एवं मार्गफल ७३ 1 वे वर्तमान अनुपश्यी हैं । उनकी अनुप्रेक्ष्या, वर्तमान से जुड़ी है । वे वर्तमान को इतना उज्ज्वल बना लेना चाहते हैं कि भविष्य की ऊँची सम्भावनाएं, वर्तमान में ही साकार हो जायें । बाहर से हटो अन्तर में लौटो और परमात्मस्वरूप में तल्लीन हो जानो, यही कुन्दकुन्द का अध्यात्म है । 1 उनका सूत्र है— तिपयारो सो अप्पा, परमंतर बाहिरो हु देहीणं । तत्थ परो भाइज्जइ, अंतोवाएरण चइवि बहिरप्पा | 'आत्मा तीन प्रकार की है - अन्तरात्मा, बहिरात्मा और परमात्मा । अन्तरात्मा के उपाय द्वारा बहिरात्मपन को छोड़कर परमात्मा का ध्यान करना चाहिये । आत्मा के तीन रूप हैं— बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा । जो बाहर है वह बहिरात्मा है । जो अन्दर है वह अन्तरात्मा है । परमात्मा, बाहर और भीतर के द्वैत से मुक्ति है । बहिरात्मा संसारी है । अन्तरात्मा संन्यासी है । परमात्मा संबुद्ध है । बहिरात्मा के फूल बिखरे हैं, अन्तरात्मा ने पिरो रखे हैं । परमात्मा, फूलों का इत्र है । परपदार्थ में सत्व को नियोजित करने वाला बहिरात्मा है । स्वयं की ओर लौटना अन्तरात्मा है । परमात्मा, कैवल्य स्वरूप में स्थितप्रज्ञ होना है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy