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भगवत्ता फैली सब ओर
दुःख से ऊपर उठने का पहला मार्ग ही है कि दुःख को भूल जाओ । रोग है तो शरीर को भूल जाओ, तनाव है तो विचारों से ऊपर उठ जाओ, नींद में भी विक्षिप्तता है तो मन से मुक्त हो जाओ । संगीत सुनो, शरीर से विचारों में चले जाओगे | ध्यान करो, विचारों से मन में चले जाओगे । शून्य शांत हो जाओ, मन के भी पार हो जाओगे । श्रात्मा, मन-वचन और शरीर का अगला चरण है । परमात्मा, आत्मा की ही प्रकाशमान चैतन्य दशा है ।
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कुन्दकुन्द जीवन के इस अनूठे विज्ञान से गहरे परिचित थे । प्राज के सूत्र में वे परमात्मा के ध्यान का प्रतिपादन करेंगे । परमात्मा का ध्यान करने की प्रेरणा देंगे, किन्तु उन्होंने अपने सूत्र में कुछ ऐसे सूत्रों का प्रयोग किया है जिन्हें मैं परमात्म ध्यान की भूमिका कहूँगा । अगर अब तक परम सत्य से साक्षात्कार नहीं हुआ तो इसका अर्थ यह नहीं कि परम सत्य बीत गया है । तुमने सीधी छलांग भरनी चाही जबकि साधना तो इंच-दर-इंच, कदम-दर-कदम बढ़ना है | यह रास्ता इतना फिसलन भरा / काई जमा है कि पांव जमने कठिन लगते हैं | अपने विवेक के पांवों को मजबूत करो । आँखे खुली हों-सामने की ओर । जैसे ही पीछे झांका, चूक जाओगे, अतीत की याद और अतीत के सपने साधना के मार्ग पर सबसे बड़ी फिसलन है ।
कुन्दकुन्द, आत्म दृष्टा हैं । अतीत वे भी जी चुके हैं, पर भविष्य में अतीत की पुनरावृत्ति नहीं करना चाहते ।
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