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सजल श्रद्धा में निखरती प्रखर प्रज्ञा
याद करो कि बचपन में चोरी की थी, जूमा खेला था। जिन्दगी तो कमियों से भरी पड़ी है। ज्ञान की दिशा में चलना शुरू करो। अपने गुणों को याद करने का प्रयास करो। जो अच्छे काम हुए हैं, उन्हें और करने का प्रयत्न करो।
रात को सोने से पूर्व दस मिनट तक अांखें बन्द कर बैठ जानो। अब सुबह से शाम तक किए गए कार्यों को याद करो। दिन भर में जो बुरे काम किए उन्हें दिमाग से निकाल दो। अच्छे काम याद करो तथा संकल्प लो कि आज यह अच्छा काम किया, कल ऐसे दो काम करूंगा। मान लो दिन भर में दो चींटियां आपके पाँव के नीचे आकर मर गई और आपने चार चींटियों को बचा लिया। जो मर गई उनके प्रति अपने को दोषी मानने से फायदा नहीं है। संकल्प करो कि आज चार चींटियां बचाईं, कल ध्यान रखूगा आठ चींटियां बच जाए। ऐसा करने से ज्ञान श्रद्धा बन जाएगा। इसी से चरित्र बनेगा। जहां दीया जलेगा, वहां अन्धकार अपने प्राप मिट जाएगा। मूल बात तो अन्धकार को हटाना ही है । प्रकाश ही अंधकार को हटाने का आधार-सूत्र है।
प्रकाश प्रात्म जाग्रति को क्रांति है। जाग्रति होश है । होश ही जीवन का पुण्य है। जहां बेहोशी है, वहीं अज्ञान है । अज्ञान ही पाप है। पाप हमेशा अज्ञान में ही होते हैं । जागरुक दशा में जो कुछ भी होता है वह पुण्य कृत्य में ही सहायक होता है। किसी ने किसी को चांटा मारा, इसलिए क्योंकि खुद का होश नहीं था। जैसे ही होश आया, क्रोध के भाव बुझ गए और प्रायश्चित के भाव उभर उठे। इसलिए एक ज्ञानी होने का सार यही है कि वह सदा जागरुक रहे, होश में
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