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________________ ४० भगवत्ता फैली सब ओर एक बार इंग्लैण्ड में बहुत बड़ी संगोष्ठी हुई। उस संगोष्ठी में भारत का प्रतिनिधित्व एक बिल्ली ने किया । तीन दिन तक चली संगोष्ठी में भाग लेकर जब बिल्ली वापस लौटी तो सबने उसे घेर लिया। उससे संगोष्ठी के बारे में पूछने लगे। बिल्ली बोली संगोष्ठी तो जोरदार थी, मगर मैं उससे जुड़ नहीं पाई। सभी ने एक स्वर में पूछा-'क्यों ?' बिल्ली बोली- क्या बताऊँ; मेरी नजर इंग्लैण्ड की महारानी के सिंहासन के पाये पर लगी रही। दिमाग भी वहीं रहा, क्योंकि वहां एक चूहा बैठा था। बिल्ली संगोष्ठी में होकर भी वहाँ नहीं थी। ऐसा चरित्र दोगला होगा। इसलिए कुन्द-कुन्द कहते हैं जं जाणइ तं गाणं, जं पेच्छइ तं च सणं भरिणयं । गाणस्स पिच्छियस्स य, समवण्णा होई चारित्तं ।। जो जानता है, वह ज्ञान है। जो देखता है, वह दर्शन है। ज्ञान और दर्शन के समायोग से ही चरित्र का निर्माण होता है। कुन्द-कुन्द कहते हैं ज्ञान से जानो, दर्शन से देखो। ज्ञान और दर्शन अपने भीतर प्रात्मसात करो। ये दोनों जब समान रूप से आएंगे, तभी आपका चरित्र सधेगा। अपने ज्ञान और दर्शन को शुद्ध करने का सूत्र यही है कि किसी के अवगुणों को मत देखो। अपने अवगुण भी मत देखो। जो गुण हैं, उनके विस्तार का प्रयास करो। यह अहंकार की बात नहीं है। इसे समझने का प्रयास करिए। आदमी अपने अवगुण ही निहारता रहेगा तो कोई फायदा नहीं है। अवगुण तो आदमी में कदम-कदम पर भरे पड़े हैं। किस-किस के लिए प्रायश्चित करोगे? अवगुणों को भूल जाओ। यह मत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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