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________________ भगवत्ता फैली सब ओर रहे। होश में गुणों का महोत्सव होता है और बेहोशी में गुण भी अवगुण दिखाई देने लग जाते हैं । कुन्द-कुन्द कहते हैं---'जं जाणइ तं गाणं', जो जानता है, ज्ञान है। जानना ही ज्ञान है। 'जं पेच्छइ तं च दंसणं', जो देखता है, दर्शन है। देखना ही दर्शन है। पता है, जागरण क्या है ? ज्ञान और दर्शन का संयोग ही जागरण है। जानने के लिए देखना जरूरी है और देखने के लिए जानने की जिज्ञासा जरूरी है। चूंकि सच्चे चारित्र्य का जन्म ही दर्शन और ज्ञान के साहचर्य से होता है इसलिए प्रात्म जागरण ही वास्तव में व्यक्ति का जीवन चारित्र्य है। कुन्द-कुन्द का यह दर्शन, ज्ञान और चारित्र्य, उनकी भगवत्ता की आध्यात्मिक ज्यामिती है। दर्शन देखने की क्षमता है। ज्ञान जानने की अंतरूं पता है और चारित्र्य उसे करने की समता है। इसलिए जानना पहला चरण है; जाने हुए पर श्रद्धा करना दूसरा चरण है और अन्तिम चरण है जाने हुए को जीवन और व्यवहार में ढालना । व्यक्ति का वही ज्ञान चारित्र्य बन पाता है जो श्रद्धा-दर्शन से गुजर जाता है। अमृत पद प्राप्ति के लिए तो हम सबसे पहले ज्ञान की ओर श्रद्धा के चरण बढाएं। प्रात्म-दृष्टा पुरुष होने का यही मौलिक चरण है। हम अपने कदम बढ़ाएं, अपने में, अपनी ओर, अपने ही द्वारा। अमृत का सागर अपने ही अन्दर है। स्वयं में ही समाया है, परमात्मा का क्षीर सागर । कुण्डलिनी की नाग शय्या पर जीवन की परम शक्ति सोयी है, जरूरत है उसे जगाने की। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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