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________________ सम्भावनाएं आत्म-अनुष्ठान की १०७ रहेगा और उपवास के दिन भूख नहीं सताएगी। आदमी ठूस-ठूस कर खा लेगा। कल भूखा जो रहना है। ऐसा उपवास फलदायी न होगा। आज ठूस-ठूस कर खा रहे हो । कल उपवास करोगे और परसों पारणे वाले दिन भी जम कर खाओगे । यह उपवास नहीं हुआ। उपवास का अर्थ है, आहार के प्रति आसक्ति कम करना। मगर हमारी आसक्ति समाप्त कहाँ हुई ! उपवास का अर्थ केवल आहार का त्याग करना ही नहीं होता अपितु, आहार के प्रति जो हमारी आसक्ति है, उसे भी समाप्त करना है। उपवास करके भी दूसरे दिन दस चीजें खाते हो तो समझ लो हमारा तप अभी तक कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया। जब तक संयम नहीं होगा, उपवास करने का कोई औचित्य नहीं रहेगा। हम उपवास भले न करें, मगर आहार के प्रति अपनी आसक्ति कम कर लें, हमारा उपवास हो जाएगा। भोजन करने बैठो तो यह मत देखना कि कौनसा मीठा है और कौनसा तीखा। जो प्राप्त हो जाए, उसे प्रेम से अनासक्त भाव से स्वीकार करना। यह हमारा उपवास हो जाएगा। उपवास का एक और अर्थ है-अात्मा के पास रहना । आत्मा के समीप तभी आ सकोगे जब आहार के प्रति हमारी आसक्ति और तृष्णा समाप्त हो जाएगी। उपवास भी दो तरह का होता है। एक मन का, दूसरा शरीर का। इसलिए शरीर से यदि उपवास न कर पायो तो मन से कर लेना। जब भी कषाय की भावना उत्पन्न हो उसे मिटाने का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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