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________________ भगवत्ता फैली सब ओर खिलौने लाकर अपना कमरा सजाता है। अलमारी में किताबें लाकर रखना भी ऐसा ही है। वो केवल सजाना हुआ। किताब तो अपनी वही होगी जो हमारे भीतर उतर चुकी हो। शास्त्र वही हमारा है, जो हमारे जीवन का संगीत बन चुका हो। चरित्र ज्ञान की परख है। ज्ञान सत्य का आचरण होना जरूरी है और जिसका आचरण कर रहे हो, उसका ज्ञान होना भी जरूरी है। इसके बाद कुन्दकुन्द दूसरा चरण पकड़ते हैं। लिंग का ग्रहण दर्शन से शुद्ध होता है। लिंग का अर्थ है 'चिह्न'। कमण्डल, त्रिशूल, दण्ड, पिच्छी, कोई भी पोशाक लिंग है। मगर लिंग की शुद्धता, चिह्न की शुद्धता तो आखिर दर्शन से है। तीसरी चीज बड़ी महत्त्वपूर्ण है। कुन्दकुन्द कहते हैंतप यदि संयम सहित हो तो वह थोड़ा होकर भी महाफल रूप होता है। यह चीज ध्यान से समझने की है। लोग तप करते हैं, संयम करते हैं। तप और संयम में फर्क है। संयम पहली कसौटी है और तप उसका अगला चरण । संयम से ही तप की शुरुआत होती है और संयम पर ही तप का समापन होता है। यात्रा संयम से शुरू होती है और वहीं जाकर समाप्त होती है। लोग उपवास भी सच्चे मन से नहीं करते। आज अगर उपवास है तो एक दिन पहले इतना खा लेंगे कि पेट भरा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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