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सम्भावनाएँ आत्म-अनुष्ठान की
तीन-चार दिन तो मुझे गुस्सा आया, फिर मैंने पाया कि मेरा गुस्सा न जाने कहाँ तिरोहित हो गया। अब आप मुझे कितनी भी बेंत मारें, मुझे गुस्सा नहीं पाता। मैं जान गया हूँ कि क्षमा ही सबसे बड़ा धर्म है। पाठ तो उसी दिन याद हो गया था। मगर मैंने इन आठ दिनों में अपने ज्ञान को आचरण की कसौटी पर कसा। अब मैं इस पाठ को अपने भीतर उतार चुका हूँ।
ज्ञान जब तक आचरण की कसौटी पर खरा न उतरे, वह अधूरा ही रहेगा। इसलिए कहा गया है कि चरित्र ही ज्ञान की कसौटी है।
आप अपने घर पर अलमारी में चाहे जितनी किताबें भर कर रख लो। वे केवल किताबें रहेंगी, भीड़ होगी, मगर उनका ज्ञान हमें तभी हो पाएगा; जब हम उन्हें पढ़कर अपने आचरण में उतारेंगे। किताबों का ज्ञान हमारे आचरण में उतरेगा, तभी वे किताबें हमारी हो पाएंगी, नहीं तो वे किताबें अलमारी की रहेंगी। कमरे की सजावट मात्र बन कर रह जाएंगी। हमारी किताब तो वह होगी जो हमारी जिन्दगी में बोलेगी। किताबें लाकर केवल अलमारी भरने से अगर ज्ञान हो जाता तो, हर कोई ज्ञानी हो जाता। आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी। किसी चूहे को कहीं से हल्दी का गांठिया मिल गया और वह पंसारी बनकर बैठ गया। एक प्रादमी अपनी दूकान कपड़े के थान से सजाता है। एक आदमी
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