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________________ १०४ भगवत्ता फैली सब ओर पहली कक्षा में पढ़ा। सुबह उठते ही परमात्मा की अर्चना करनी चाहिए। माता-पिता को प्रणाम करना चाहिए। झूठ नहीं बोलना चाहिए। मगर लोग ऐसा नहीं करते। न तो नमस्कार करते हैं और न ही प्रार्थना। झूठ तो बोलते ही हैं, चोरी भी कर लेते हैं। पहली कक्षा का ज्ञान भी हमारा नहीं बन पाया। हम भले ही कह दें कि हमने एम. ए. कर लिया। हमें दुनिया के बारे में यह बात मालूम है, यह हमें आता है। यह सब बेकार है। अभी तक तो उन्हें पहली कक्षा का ज्ञान भी नहीं हो पाया है। जो ज्ञान हमें एम. ए. से एम ए एन (मैन) बनाए, वही ज्ञान है। द्रोण ने युधिष्ठिर सहित सभी से कहा कि कल याद करके पाना कि 'क्षमा सबसे बड़ा धर्म है।' अगले दिन सभी बच्चे आए और पाठ ज्यों-का-त्यों सुना दिया। द्रोण ने युधिष्ठिर से पूछा तो उसने इन्कार कर दिया। द्रोण को गुस्सा आ गया। उन्होंने दो बेंत जमा दी। अगले दिन द्रोण ने पुनः पूछा-'पाठ याद करके आए ?' द्रोण हैरान रह गए जब युधिष्ठिर ने इन्कार में सिर हिलाया। द्रोण ने दो बेंत और जमा दी। ऐसा सात दिन तक चला। पाठवें दिन युधिष्ठिर ने कहा-'आज मुझे पाठ याद हो गया है कि क्षमा सबसे बड़ा धर्म है।' द्रोण ने कहा-इत्ती-सी बात याद करने में तुझे आठ दिन लग गए। युधिष्ठिर बोला-गुरुदेव ! सात दिन तक आपकी बेंत खाकर मैं मन में मनन करता रहा कि मुझे आपकी बेंत खाकर गुस्सा आता है या नहीं। पहले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003967
Book TitleBhagwatta Faili Sab Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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