________________
१०८
भगवत्ता फैली सब प्रोर
प्रयत्न करना । रात में सोने से पूर्व संकल्प करो । कल मैं एक बार भी क्रोध न करूंगा । यह हमारे कषाय का उपवास हुआ । शरीर और आत्मा के बीच लगातार युद्ध चलता है । इस युद्ध विराम का नाम ही उपवास है ।
हम उपवास करें और क्रोध भीकरें, यह ठीक नहीं होगा । एक भाई ने तीस दिन उपवास किए। तीसवें दिन वे हमारे पास आए | अगले दिन उन्हें पारणा करना था । उनके साथ काफी भीड़ थी। मैंने पूछ लिया- आपने तीस दिन उपवास किया, क्या आपके साथ आपके परिजन भी आए हैं ? वह बोले - हाँ ! ये जो मेरे पास बैठे हैं, मेरे अनुज हैं। उनसे पूछा गया, क्यों भाई ! आपने कितने उपवास किए ? वह बोला- मैं भूखा नहीं रह सकता। उनके जाने के बाद वहाँ खड़े एक सज्जन ने मुझे बताया - महाराज ! आप नहीं जानते । दोनों भाइयों के बीच हमेशा झगड़े चलते रहते हैं । झगड़े के कारण ही इनकी फैक्ट्री पर ताला लगा हुआ है । प्राप इनका मेल करा सकें तो पुण्य का काम होगा । मैं एक दिन छोटे वाले भाई के घर गया और उसे समझाया कि भाई क्यों आपस में लड़ते हो ? लड़ाई के कारण तुम्हारी फैक्ट्री बन्द पड़ी है, तुम्हारी खुशहाली पर लगा ताला खोल क्यों नहीं लेते ? जाओ, अपने भाई के खिलाफ न्यायालय में चल रहा मुकदमा वापस ले लो । वह मान गया । वह बोला- 'मैं अपने भाई के तीस उपवास करने के उपलक्ष में यह घोषणा करता हूँ कि मैं उनसे जाकर माफी माँग लूंगा ।'
अब वह बड़े भाई
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org