________________
[ ३ ]
किसी प्रकार का आक्रोश या द्वेष न रखकर उसे सहन करना, जबकि व्यावहारिक क्षमा का अर्थ है- अपराधों के प्रति भी मधुर व्यवहार करना | क्षमा मन, , वचन और काया - तीनों का संगम है । अतः वह मानसिक, वाचिक, और कायिक तीनों प्रकार की हो सकती है ।
तितिक्षा, सहिष्णुता, बरदाश्त, सहनशीलता, गमखोरी आदि क्षमा के पर्यायवाची हैं । उपशम, अक्रोध आदि के रूप में भी क्षमा शब्द प्रयुक्त हुआ है। इससे इसके अर्थ-विस्तार में और बढ़ोत्तरी हुई है । परन्तु उपशम, अक्रोध एवं क्षमा को शास्त्रीय दृष्टि से समीक्षित करें तो इनमें परस्पर अन्तर भी पाते हैं । यह अन्तर संक्षेप में इस प्रकार है
क्षमा और उपशम :
उपशम शब्द में 'उप' उपसर्ग है, जो 'शम' के साथ प्रयुक्त होकर उसके अर्थ को विशेषता प्रदान करता है । 'शम' शब्द 'शम्' धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है - ' शान्ति' । अतः इस अर्थ में हम क्षमा और उपशम- दोनों को एकार्थक मानते हैं । लेकिन उपशम शब्द शांति का द्योतक होते हुए भी क्षमा से भिन्न अर्थ रखता है। उपशम में इन्द्रियों या मनोविकारों को उपशमित किया जाता है । उन्हें वश में किया जाता है, दबाया या घटाया जाता है ।
सामान्य कोटि की क्षमा उपशम के लिए आवश्यक है । किन्तु उच्च कोटि की क्षमा उपशम के बाद ही सम्भव है । मन के विकारों
ग्रस्त व्यक्ति की क्षमा कथमपि उत्तम नहीं हो सकती । महाभारत में युधिष्ठिर को परम क्षमाशील कहा गया है, क्योंकि उनका चित्त शान्त था । उन्हें लोग हर तरह से बुरा-भला कहते, उन पर आक्षेप तथा आघात करते, किन्तु युधिष्ठिर उपशमित होने के कारण उसका प्रतिकार नहीं करते थे । अतः क्षमा की साधना के लिए उपशम प्रथम सोपान है ।
क्षमा और अक्रोध :
उपशम की भांति अक्रोध भी क्षमा के 'क्षमा और अक्रोध यद्यपि समानार्थक अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, तथापि वास्तविक में भेद है । अपराधी के प्रति प्रतिकार
Jain Education International
अर्थ में व्यवहृत होता है । माने जाते हैं और एक ही दृष्टि से दोनों के अर्थों करने की भावना उत्पन्न
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org