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[ ३२ ] उत्पन्न होता है । पति-पत्नी, सास-बहू, पिता-पुत्र आदि में विचारभेद या रुचि-भेद क्रोध का कारण बन जाता है।
४. संदेह-सन्देह एक मानसिक अवस्था है । इसमें व्यक्ति किसी चीज को ठीक तरह से पहवान या समझ नहीं पाता। सन्देह भी क्रोध का कारण बनता है। जैसे-पंजाब काण्ड में विदेशी शक्ति का हाथ था, ऐसा भारत को सन्देह है। अतः भारत सन्देह के आधार पर ही दूसरे देशों पर आक्षेप करता है । जैनागमों में इसी तरह का एक प्रसंग है कि मैतार्यमुनि आहार-प्राप्ति हेतु एक स्वर्णकार के घर पहुँचे। स्वर्णकार घर में आहार लाने गया। इधर से उसके स्वर्णयवों को एक पक्षी निगलकर उड़ गया। स्वर्णकार को सन्देह हुआ कि मुनि ने यह चौर्यकर्म किया है। उसे क्रोध आ गया और मुनि को प्रताड़ा, उत्कट कष्ट दिये। इस प्रकार सन्देह से भी क्रोध प्रकट होता है। ५. स्वार्थसिद्धि में अवरोध-मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है
चाहो जो अपने लिए, वही और के अर्थ ।
केवल स्वार्थ विचारना, है अत्यन्त अनर्थ ॥ सचमुच, स्वार्थपूर्ति अनर्थ मूलक है । सारा संसार स्वार्थी है । सभी स्वार्थपूर्ति में निमग्न हैं । स्वार्थ-परायण व्यक्ति अपनी अपेक्षाओं की उपेक्षा सहन नहीं कर सकता। उसकी अपेक्षा की उपेक्षा क्रोध की अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करती है। रामायण की यह बात प्रसिद्ध है कि जटायु ने रावण की स्वार्थ-सिद्धि में रुकावट डालने का प्रयास किया, तो रावण कुपित हो उठा। 'क्षमा बनाम क्रोध' शीर्षक के अन्तर्गत यह निर्दिष्ट है कि स्वार्थ पूर्ति में अवरोध उपस्थित होने पर सोमिल ब्राह्मण ने गजसूकुमार मुनि पर कोध किया था।
इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि दूषित वचन, अनुचित व्यवहार, विचारों या रुचियों में पार्थक्य, सन्देह और स्वार्थ सिद्धि में अवरोध होना क्रोधोत्पत्ति के प्रमुख हेतु हैं। क्रोध की परम्परा की वृद्धि का कारण : ___ अग्नि प्रज्वलित होती है, किंतु यदि उसे ईधन न मिले तो वह बुझ जाती है । वह उत्कृष्टतम तीन दिन तक जल सकती है। इससे अधिक उसका जीवन नहीं हो सकता, किन्तु यदि ईधन प्राप्त होता रहे तो वह सुदीर्घ काल तक दहकती रहती है । क्रोध के सम्बन्ध में १. द्रष्टव्य-आवश्यक नियुक्ति ४८.६६, ८७०-१. २. काबा और कार्बला.
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