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________________ [ ३१ ] क्रोध की उत्पत्ति के हेतुओं के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिक तथ्य भी अवलोक्य हैं। मनोवैज्ञानिकों ने क्रोध के जन्म-स्थान का पता लगा लिया है । क्रोध का जन्म ताकिक बुद्धि और चेतन मस्तिष्क से होता है । वैज्ञानिकों का कथन है कि चेतन मस्तिष्क (सैरेबियन कोरटेक्स) के काफी नीचे 'आदिममस्तिष्क' है, वही क्रोध का उत्पत्ति-स्थान है । यह आदिम हिस्सा जब किसी कारण से उत्तेजित हो जाता है, तो क्रोध का जन्म होता है। ____ क्रोध के उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते हैं। इन्हें हम निम्न प्रकार से विभाजित कर सकते हैं--- १. दूषित वचन-बुरे वचनों या अपशब्दों को सुनकर मनुष्य क्रोधित हो जाता है । शास्त्रों में इसके बहुत-से उदाहरण मिलते हैं । महाभारत में दुर्योधन के दुर्वचनों से ही कृष्ण कुपित हुए थे। पूर्व पृष्ठों में हम पढ़ चुके हैं कि राजा श्रेणिक के दुर्मुख एवं सुमुख नामक दत के वचनों से राजर्षि प्रसन्नचन्द का क्रोध आ गया था। हमें भी कोई व्यक्ति कठोर वचन कहता है, तो हमारे में भी क्रोध आविर्भूत हो जाता है। अतः क्रोध की उत्पत्ति में एक कारण दुषित वचन है। २. अनुचित व्यवहार-अच्छा व्यवहार स्नेह बढ़ाता है। बूरा व्यवहार कोध को जन्म देता है। पुत्र का बुरा व्यवहार पिता के क्रोध का कारण बनता है। कर्मचारी का खराब बरताव अधिकारी के क्रोध का हेतू है। भारतीय ग्रन्थों में भी अनुचित व्यवहार से क्रोध उत्पन्न होने के प्रसंग उपलब्ध हैं। जैसे-दुर्वासा ऋषि शकुन्तला के गृह-द्वार पर पहुँचे । शकुन्तला ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। ऋषि उसके इस व्यवहार पर कुपित हो गये। उन्होंने उसे अभिशाप दे दिया था। इसी तरह द्रौपदी ने नारद ऋषि के आगमन पर उनका सत्कार नहीं किया, जिस पर ऋद्ध होकर उन्होंने उसका अपहरण करवा दिया था। यादवकुमारों के अनुचित व्यवहार पर द्वैयापन ऋषि कुपित हो गये, जो कि द्वारका नगरी के विनाश का कारण बना। इस प्रसंग का उल्लेख हम पूर्व में कर आए हैं । अतः यह स्पष्ट है कि अनुचित व्यवहार से भी क्रोध का जन्म होता है । ३ विचारों या रुचियों में पार्थक्य-सबके प्रति आत्मवत दष्टि से क्षमा प्रगट होती है। जबकि परायेपन का भाव क्रोध की उत्पत्ति का कारण होता है। विचारों या रुचियों में भेद होने से भी क्रोध १. द्रष्टव्य-अभिज्ञान शाकुन्तल न्, ४.४ २. द्रष्टव्य-अन्तक दशांग, ५.१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003966
Book TitleKshama ke Swar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJain Shwetambar Shree Sangh Colkatta
Publication Year1984
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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