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________________ [ २८ ] । हैं - ये चारों हानिकारक हैं । क्रोध प्रीति को नष्ट करता है तो मान विनय को नष्ट करता है माया मैत्री को नष्ट करती हैं तो लोभ सब कुछ नष्ट करता है । इसलिए क्षमा से क्रोध पर विजय प्राप्त करें । मार्दव (नम्रता ) से मान को जीतें । आर्जव (ऋजुता ) से माया पर विजय प्राप्त करें । सन्तोष से लोभ को पराजित करें । 2 इनकी आंशिक विद्यमानता भी क्षति पहुँचाने वाली होती है । ऋण को थोड़ा, घाव को छोटा, आग को तनिक और कषाय को अल्प मान, विश्वस्त होकर नहीं बैठ जाना चाहिए। क्योंकि ये थोड़े भी बढ़कर बहुत हो जाते हैं । " अतएव क्रोध त्याज्य है । जब तक क्रोध- कषाय मनुष्य पर अपना प्रभुत्व जमाये रहेगा, तब तक के लिए उसके चित्त में दुर्भावना और द्वेष की खिड़की खुली रहेगी। जब तक जीवन में दुर्भावना और द्वेष है, तब तक अविवेकता भी है, अभिमान भी है, तिरस्कार और भय भी है । इस तरह क्रोधी मनुष्य की सारी सद्वृत्तियाँ कुण्ठित हो जाती हैं। उसके शुभ परिणाम सर्वथा नष्ट हो जाते हैं । गम्भीरता, शान्ति, विवेक, आनन्द, नीति, क्षमता और विचार-शक्ति सभी से वह शून्य-सा हो जाता है । कविवर रामनरेश त्रिपाठी ने लिखा है भाग्यहीन जब किसी हृदय में क्रोध उदय होता है । बढ़ती है पाशविक शक्ति आनिक बल क्षय होता है । क्रोध, दया सुविचार न्याय का मार्ग भ्रष्ट करता है । अपना ही आधार प्रथम वह दुष्ट नष्ट करता है । क्रोध तुम्हारा प्रबल शत्रु है, बसा तुम्हारे घर में । हो सकते हो उसे जीतकर विजयी तुम जग भर में 14 यहाँ हमने क्रोध के सामान्य स्वरूप पर प्रकाश डाला है । उसके विवक्षितार्थ को अधिक स्पष्ट करने के लिए विस्तार की अपेक्षा है | आगामी पृष्ठों में हम इस पर थोड़े विस्तार से चर्चा करेंगे । क्रोध के प्रकार : क्रोध चतुःप्रतिष्ठित होता है- १. आत्मप्रतिष्ठित २ पर प्रतिष्ठित, ३. तदुभयप्रतिष्ठित और ४. अप्रतिष्ठित ।" आत्म-प्रतिष्ठित क्रोध स्वविषयक होता है और अपने ही निमित्त से उत्पन्न होता है । १. दशवैकालिक, ८.३७ २. वही, ८.३८. ४. पथिक, पृष्ठ ५८. ३. विशेषावश्यक भाष्य, १३१० ५. स्थानांग, ४. १. ७६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003966
Book TitleKshama ke Swar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJain Shwetambar Shree Sangh Colkatta
Publication Year1984
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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