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________________ [ २५ ] याचना की । उसकी क्षमाशीलता ने ही उसे कैवल्य प्रदान किया । " (३) मुनि गजसुकुमार श्मशान में साधना कर रहे थे । सोमिल, जब उस मार्ग से जा रहा था तो उसने उन्हें मुनि अवस्था में देखा । गजकुमार संसार से विरक्त हो, अपनी भावी पत्ती सोमा का त्याग कर मुनि बन गये थे । सोमा सोमिल की पुत्री थी । सोमिल मुनि पर कुपित हो गया । उसने मुनि के सिर के चारों ओर मिट्टी की अंगीठी बनायी और उसमें जलते हुए अंगारे रख दिये । मुनि अत्यधिक सहनशील थे । सहनशीलता की पराकाष्ठा के कारण ही मुनि के राग-द्वेष रूपी कर्म ईंधन नष्ट हो गया । उन्होंने उसी रात्रि में मुक्ति प्राप्त करली । 2 गजसुकुमार का यह वृत्त हमें क्षमा की अच्छी शिक्षा देता है । (४) राजा प्रसन्नचन्द्र ने अपने नाबालिग पुत्र को राज्य देकर मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली । एक दिन, जब वे कायोत्सर्ग कर रहे थे, उन्होंने सुमुख एवं दुमुख नामक दो व्यक्तियों का यह वार्तालापसुना"राजा प्रसन्नचन्द्र ने अपने छोटे पुत्र को राज्य-भार सौंपकर और संन्यास ग्रहण कर बड़ी भूल की है । उसके मन्त्रियों ने उसके पुत्र और परिवार की हत्या करने के लिए षडयन्त्र रचा है । राजकुमार अपना महल छोड़कर और कहीं चला गया ।" इस चर्चा ने ध्यानस्थ तपस्वी को क्रुद्ध कर दिया । उन्होंने अपने विचारों में ही मन्त्रियों एवं शत्रुओं के विरुद्ध कठोर लड़ाई शुरू कर दी। बाद में जब उन्होंने अनुभव किया कि मेरा वर्तमान वास्तविक स्वरूप मुनि का है, राजा का नहीं । राजर्षि ने अपने क्रुद्ध संकल्पों एवं विचारों की आलोचना की । वे उपशम-गिरि पर चढ़े और सिद्ध-बुद्ध बन गये । (५) एक बार साध्वी मृगावती तीर्थंकर महावीर के धार्मिक उपदेशों को श्रवण करने के लिए उनके स्थान पर गयी लेकिन वह १. द्रष्टव्य - - (क) उत्तराध्ययन चूर्ण, पृष्ठ ३१. -- (ख) आवश्यक वृत्ति, पृष्ठ ५७७ (ग) बृहत्कल्पभाष्य, ७.६१०२-४ २. द्रष्टव्य——(क) अन्तकृद्दशांग, अनुच्छेद ६. (ख) आवश्यक चूर्ण, ३५५, ३५८, ३६२, ३६४–५, ५३६. ३. द्रष्टव्य - - (क) आवश्यक चूर्णि भाग १, पृष्ठ ४५६. , (ख) निशीथ चूर्णि भाग ५, पृष्ठ ६८. (ग) स्थानांग वृत्ति, पृष्ठ ४४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003966
Book TitleKshama ke Swar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJain Shwetambar Shree Sangh Colkatta
Publication Year1984
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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