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का उपयोग करते हो, लोग तुम्हें चाहेंगे, इज्जत देंगे। इसके विपरीत अशिष्ट भाषा का प्रयोग करते हो, तो कोई पास बिठाना भी पसन्द नहीं करेगा, लोग नफरत
करेंगे।
बोलने का, अभिव्यक्ति का, भाषा का व्यवहार करने का अधिकार सभी को है, लेकिन व्यवहार की मर्यादा के अतिक्रमण का अधिकार किसी को भी नहीं है। कोई तुम पर क्रोध करता है, करने दो, पर तुम उसे स्वीकार मत करो, सहन कर जाओ तो वह आदमी शान्त हो जाएगा, उसकी गालियां उसी पर प्रतिध्वनित होकर लौट जाएंगी। जैसे आप किसी व्यक्ति को भोजन के लिए आमन्त्रित करें
और वह आपका निमन्त्रण अस्वीकार कर दे तो आपका भोजन आपके घर ही में रह जाता है। इसी तरह यदि कोई आप पर क्रोध करता है, गालियां बकता है और आप उन्हें स्वीकार नहीं करते, तो वह क्रोध, वे गालियां उसी व्यक्ति के पास रह जाती हैं।
- कोई कुछ भी कहे आपको अपने आप पर नियन्त्रण, अपने आप पर अनुशासन और सभी के प्रति मानवीय भाव रखना चाहिए। क्रोध की प्रतिक्रिया क्रोध से करेंगे तो क्रोध की ही वृद्धि होगी। यदि क्रोध का सामना प्रेम से करेंगे तो क्रोध परास्त हो जाएगा। क्रोध को न कोई परिजन अच्छा मानता है, न दोस्त स्वीकार करता है। समाज भी प्रेम का, सद्व्यवहार का पुजारी है। हम अपने पर क्रोध करें तो उस पर समाज को लेशमात्र भी ऐतराज नहीं है पर जहां हमारा क्रोध समाज पर हावी होगा, समाज उसे बिना न्याय के कभी स्वीकार न करेगा।
. आप प्रतिभावान् हैं, प्रबुद्ध हैं। हमें अपनी प्रतिभा का उपयोग क्रोध में नहीं, क्रोध के छिछलेपन में नहीं, मधुरता और विनम्रता में करना चाहिये। क्रोध अपने भीतर के क्रोध पर होना चाहिय । अक्रोध ही मार्ग है अरिहन्त का। भीतर का विष रूपान्तरित होना चाहिये। संस्कारित विष का नाम ही शक्ति का अमृत होना है। मेरा निमन्त्रण अमृत का है, अमृत के लिए है। चलें हम क्रोध से अक्रोध की ओर, प्रतिहिंसा से प्रेम की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, विष से अमृत की ओर। राजचन्द्र तुम्हारे लिए सहायक हो सकते हैं। अर्हतता की उपलब्धि, जिनत्व की साधना ही राजचन्द्र का राज है। जीवन में सहजता लाएं, स्वाभाविकता लाएं - परमार्थ का यही व्यावहारिक रूप है।
'सहजात्म स्वरूप परम गुरु' ।
राजचन्द्र को नमस्कार है। आपको, आपकी समस्त अर्हत् सम्भावनाओं को।
अमृत प्रेम।
बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ७६
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