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________________ गई थी। बिना लंगर उठाए, पतवारें कितनी भी चलाओ, पहुँचना कहीं नहीं होगा । जीवन के सागर में भी यही होता है। जब तक जंजीरें न खुलेंगी, पतवारें तो बहुत चलेंगी मगर पहुँचोगे कहीं नहीं । कभी किसी छोटे बच्चे को देखना । वह अपने घर में स्टैण्ड पर खड़ी हुई सायकल पर बैठ जाता है और खूब पैडल चलाता है, लेकिन पहुँचता कहीं नहीं है। कारण सायकल तो स्टैण्ड पर खड़ी है। गुरु का काम सिर्फ यह होता है कि वह तुम्हें बता दे कि तुम्हारी सायकल स्टैण्ड पर खड़ी है। गुरु का काम कभी जंजीरों को खोलना नहीं होता। गुरु तुम्हें पतवारें दे सकता है, यह बता सकता है कि तुम्हारी जंजीरें ये- ये हैं, लेकिन जंजीरें तो तुम्हें ही खोलनी पड़ेंगी। मैं जानता हूँ कि मैं आपके हाथों में पतवारें पकड़ा दूँ तो आप उन्हें खूब चला लेंगे। पतवारें चलाने का आपको बहुत अभ्यास है, लेकिन आप अपनी जंजीरें खोलने का प्रयास नहीं करेंगे। आप संसार का मजा भी लेना चाहते हैं। और समाधि का आनन्द भी लूटना चाहते हैं । हम बार-बार नहाते हैं, लेकिन उतनी ही बार अपने शरीर पर कादा - कीचड़ भी उछाल लेते हैं । इसलिए कभी भी निर्मलता नहीं आ पाती है । हाथी का वह स्नान व्यर्थ है, अगर वह सरोवर से बाहर निकलते ही अपनी पीठ पर माटी डालता है। सद्गुरु का संयोग तो कई बार मिला, गुरु ने बताया भी कि तुम्हारे पानी में कीचड़ जमा है । तुम उसमें फिटकरी घुमाते हो, कचरा नीचे जम जाता है, पानी साफ हो जाता है लेकिन गुरु के जाते ही हवा का झोंका लगता है । उस हलचल से नीचे जमा कीचड़ ऊपर आ जाता है । पानी जैसा था, वैसा ही हो जाता है। नतीजा यह होता है, जितनी बार कीचड़ नीचे जमता है, उतनी ही बार वह फिर ऊपर आ जाता है। क्योंकि कीचड़ था तो वहीं, पात्र से बाहर तो नहीं हुआ था। पानी के निर्मलीकरण के लिए पानी बाहर निकालो। भीतर जमा कचरा अलग कर डालो । मल और जल, दोनों साथ-साथ हों, तो जल निर्मल नहीं हो सकता । जल निर्मल हो सकता है, इसीलिए तो मल की ओर, जल की ओर इशारा कर रहा हूँ। जल निर्मल करें, जीवन के लंगर खोलें। नौका तो दो चार जंजीरों से बंधी होती है, पर मनुष्य तो न जाने कितनी जंजीरों से बंधा हुआ है । हाथों में हिंसा की हथकड़ियां और पांवों में मोह की बेड़ियां पड़ी हुई हैं। धन की जंजीर, पद की जंजीर, प्रतिष्ठा की जंजीर, परिवार, संसार न जाने कितनी - कितनी जंजीरों से बंधा हुआ है मनुष्य । दोस्तों से ही नहीं, दुश्मनों से भी बंधा हुआ है। आदमी को जितनी याद दोस्तों की नहीं आती, उससे कहीं ज्यादा दुश्मनों की याद सताती Jain Education International नयन बिना पावें नहीं / ४१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003965
Book TitleBina Nayan ki Bat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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