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आत्मा की सत्ता : अनछुई गहराईयाँ/६९ चूंकि आत्मा अमर है इसलिए जन्म-मरण का ज्वार भाटा इसके सागर में उठता जरूर है मगर आत्म-सागर अपने आप में प्रशान्त है इसीलिए मैं आत्मा को जीवन कह देता हूँ। जीवन न जन्मता है न मरता है। जीवन की मृत्यु नहीं होती और मृत का जीवन नहीं होता।
एक फकीर का एक शिष्य मर गया। जब फकीर ने यह सुना तो शिष्य के घर गया। लोग वहाँ रो रहे थे। शिष्य की लाश एक किनारे पड़ी थी। मृत का गुरु आया हुआ जानकर लोगों ने उन्हें आने के लिए रास्ता दिया। अपने शिष्य की लाश देखकर उस फकीर ने उपस्थित लोगों से जोर से पूछा। यह इन्सान मरा हुआ है या जिन्दा । फकीर के इस प्रश्न में लोगों को चौंका डाला । अरे भला यह कैसा प्रश्न एक ओर लाश पड़ी है और दूसरी ओर फकीर पूछता है कि यह मरा हुआ है या जिन्दा। क्या इसकी मृत्यु पर भी सन्देह है ? एक आदमी ने कहा फकीर साहब ! आपके प्रश्न ने हमको उलझा दिया है। फकीर का चेहरा बड़ा गंभीर था पता है साधु ने क्या कहा जो आज मृत है वह पहले भी मृत था जो पहले जीवित था वह आज भी जीवित है। मात्र दोनों का रिश्ता टूट गया।
फकीर ने बिल्कुल ठीक ही कहा था। जो लोग जीवन की सही परिभाषा नहीं जानते हैं, वे मौत को जीवन का समापन समझते हैं । किन्तु ऐसा नहीं है। जोवन तो जन्म और मृत्यु के भीतर भी है और बाहर भी। जीवन का अस्तित्व जन्म के पहले भी रहता है, और मृत्यु के बाद भी रहता है। जीवन का ही जन्म है, जीवन की ही मृत्यु है पर न तो जीवन का कोई जन्म है और न उसकी मृत्यु है जन्म-मरण होते रहते हैं, पर जीवन शाश्वत है। राही वे ही हैं, राह बदलते रहते हैं। ___ जीवन अर्थात् आत्मा और आत्मा अर्थात् जीवन । चाहे जीवन कहें, चाहे आत्मा कहें, दोनों एक ही हैं। इस द्वैत में छिपे अद्वैत को
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