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________________ आत्मवाद : रहस्यमयी परतों का उद्घाटन आत्म-दर्शन जीवन-दर्शन का पर्याय है। जिसे हम जीवन कहते हैं, आत्मा उसी का शब्दान्तर है। जीवन अपना अस्तित्व आत्मा से ही पाता है। अतः जोवन की जननी आत्मा ही है। जैसे बिना मुर्गी के अण्डा नहीं होता, बिना माँ के बच्चा नहीं होता, वैसे ही बिना आत्मा के जोवन नहीं होता। पुल्लिंग का जन्म हो स्त्रीलिंग से होता है । यद्यपि पुल्लिंग का अपना महत्व है, फिर भी नारी नर से भारी। इसलिए एक बात मन में जमा लीजिये कि आत्मवाद की नींव पर ही खड़ा होता है जीवन का महल, विश्व का महल। आत्मवाद ही जीवन का, विश्व का, अस्तित्व का रहस्य है। आत्मा शाश्वत है, जीवन भी शाश्वत है। जो जन्मता-मरता है, उसका नाम शरीर है। इस बिचौलिये फर्क का नाम ही भेद-विज्ञान है। जो यह साबित करता है देह ही आत्मा नहीं है, और आत्मा ही देह नहीं है। दोनों अलग-अलग हैं, दूध-पानी की तरह जुदे-जुदे हैं। जिसके पास जीवन में हंस की नजरे हैं, वही इस भेद-विज्ञान को भलीभाँति जानतासमझता है। ज्ञानी, मनीषी जैसी संज्ञाएं ऐसे जोवन-साधकों के लिए ही जन्मी हैं। ऐसे लोगों के ही चिन्तन -गर्भ से दर्शन पनपते हैं, फिलॉसफी जनमती है। दुनिया में दर्शन हजारों हैं। "मुंडे मुंडे मतिभिन्ना" जिसकी जैसी मति उसका वैसा ही दर्शन है। पर मति को भी अपना घोंसला बनाने के लिए आत्मा के पेड़ पर टिकना होता है। मति से चिन्तन पैदा होता है, चिन्तन से दर्शन पैदा होता है, पर आत्मा सबकी सम्बन्धी है। सबका इससे रिश्ता-नाता है। इसलिए जो आत्मा की कटनी करता है, वह अपने रिश्तेदारों के साथ दगाबाजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003964
Book TitleAmiras Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1998
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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