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५२ / अमीरसधारा तो जो ऐसे लोग हैं, वे हो ध्यान की कुठार से भव-वृक्षों को काट सकते हैं। उन्हीं के आत्म-मन्दिर में सदा मुक्ति का दीप जलता रहता है। सचमुच, जो व्यक्ति संसार के वास्तविक स्वरूप से, मन, वचन, काया के स्वरूप से सुपरिचित है, वीतराग भाव से युक्त है और निजानन्द रसलीन होना चाहता है, वही पता लगा सकता है, कुंडल में, नाभि में छिपी कस्तूरी का।
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